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श्री गुरु रविदास जयंती पर विशेष

February 21, 2024 03:03 PM

ऐसा चाहूं राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न।
 छोट बड़ो सब सम बसैं, रविदास रहे प्रसन्न।।"
     
   विश्व में जब जब भी धर्म, संस्कृति व सामाजिक सद्भाव का ह्रास हुआ है, तब तब धरती पर संत- महात्माओं और महापुरुषों का अवतरण हुआ है। 15वीं शताब्दी  में श्री गुरु रविदास जी तथा संत कबीर दास जी व अन्य महान आत्माएं  धरती पर अवतरित हुई ।
  आज ही के दिन 1377 ईस्वी में काशी के श्री गोवर्धन गांव में माता कलसा देवी की कोख से पिता संतोख दास जी के घर बालक रविदास का जन्म हुआ। पिता संतोख दास जी जूते बनाने का काम करते थे। उन्होंने बड़े होकर जूते बनाने के कार्य को ही अपने परिवार की आजीविका का साधन बनाया और अपनी वाणी के माध्यम से पाखंडवाद का भंडाफोड़ किया।


     उन्होंने धार्मिक व सामाजिक एकता के लिए जाति -पाति का विरोध किया और कहा कि---
" जाति-जाति में जाति है, ज्यों केतन के पात..
 रैदास मनुष्य न जुड़ सकै, जब तक जाति न जात" !
वे अपनी वाणी में कहते हैं कि जब तक जाति खत्म नहीं होगी तब तक इंसानी एकता नहीं हो सकती। श्री गुरु रविदास जी महाराज किसी एक जाति के नहीं बल्कि पूरे समाज के पथ प्रदर्शक थे।
 
श्री गुरु रविदास जी वैमनस्य,नफरत और सांप्रदायिकता के  प्रबल विरोधी थे। उन्होंने साफ कहा कि--
 "राम ,रहीम, काशी, काबा, मंदिर, मस्जिद सब एक हैं।"
  इस प्रकार से उन्होंने "वसुधैव कुटुंबकम" का संदेश भी पहली बार दिया था।
 
उन्होंने सदैव कर्म की प्रधानता पर बल दिया। एक दिन एक ब्राह्मण इनके पास आये और कहा कि वे गंगा स्नान करने जा रहे हैं जूता चाहिए। उन्होंने बिना पैसे लिए ब्राह्मण को जूता दे दिया। ब्राह्मण द्वारा गंगा स्नान हेतु साथ चलने के आग्रह पर भी उन्होंने यह कहकर इंकार कर दिया कि उन्हें किसी का जूता समय पर देना है। इसलिए वे गंगा स्नान को नहीं जा सकते। उन्होंने एक सुपारी ब्राह्मण को देकर कहा कि, इसे मेरी ओर से गंगा मैया को दे देना। ब्राह्मण ने गंगा स्नान करने के बाद गंगा मैया की पूजा की और जब चलने लगा तो अनमने मन से रविदास जी द्वारा दिया सुपारी गंगा में उछाल दिया। तभी एक चमत्कार हुआ गंगा मैया प्रकट हो गयीं और रविदास जी द्वारा दिया गया सुपारी अपने हाथ में ले लिया। गंगा मैया ने एक सोने का कंगन ब्राह्मण को दिया और कहा कि इसे ले जाकर रविदास को दे देना। ब्राह्मण भाव विभोर होकर रविदास जी के पास आया और बोला कि आज तक गंगा मैया की पूजा मैंने की लेकिन गंगा मैया के दर्शन कभी नहीं हुए। लेकिन आपकी भक्ति का प्रताप ऐसा है कि गंगा मैया ने स्वयं प्रकट होकर आपकी दी हुई सुपारी को स्वीकार किया और आपको सोने का कंगन दिया है। आपकी कृपा से मुझे भी गंगा मैया के दर्शन हुए। इस बात की ख़बर पूरे काशी में फैल गयी। रविदास जी के विरोधियों ने इसे पाखंड बताया और कहा कि अगर रविदास जी सच्चे भक्त हैं तो दूसरा कंगन लाकर दिखाएं।

रविदास जी चमड़ा साफ करने के लिए एक बर्तन में जल भरकर रखते थे। इस बर्तन में रखे जल से गंगा मैया प्रकट हुई और दूसरा कंगन रविदास जी को भेंट किया। श्री गुरु रविदास जी के विरोधियों का सिर नीचा हुआ और गुरु रविदास जी की जय-जयकार होने लगी। इसी समय से यह कहावत प्रसिद्ध हो गई। "मन चंगा तो कठौती में गंगा।"
 
संत शिरोमणि श्री गुरु रविदास जी के दिव्य ज्ञान से प्रभावित होकर मीराबाई ने संत श्री गुरु रविदास जी को अपना गुरु माना, और खुलकर कहा भी – “गुरु मिलिआ संत गुरु रविदास जी, दीन्ही ज्ञान की गुटकी”। मीराबाई के गुरु धारण करने के पश्चात देश के सैकड़ों राजा-महाराजा व उनकी रानियां श्री गुरु रविदास जी के शिष्य बने और समाज सुधार का कार्य किया। भक्ति काल के इस दौर में निर्गुण विचारधारा भली भांति फली फूली और समाज को नई दिशा मिली।  उनकी वाणी को अनेक धर्मग्रंथों में भी प्रचारित किया गया। सिख धर्म के पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब में इकतालीस  शब्दों -वाणियों को शामिल किया गया जो आज पूरी मानवता को दिव्यमान कर रहे हैं।

 संत शिरोमणि श्री गुरु रविदास जी महाराज समता, समरसता व राष्ट्रीय एकता के पैरोकार व पक्षधर थे। उन्होंने कहा भी है कि --
"ऐसा चाहूं राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न।
 छोट बड़ो सब सम बसैं, रविदास रहे प्रसन्न।।"
समाज में समानता और सबको पेट भर भोजन मिलने का जो सपना संत शिरोमणि श्री गुरु रविदास जी महाराज ने 15वीं शताब्दी में संजोया था, उसे आज की सरकारें साकार करने में लगी हैं। संत शिरोमणि श्री गुरु रविदास जी महाराज एक ऐसे संत व दिव्य आत्मा थे जिन्होंने बेहद कठिन परिस्थितियों में समाज का मार्गदर्शन कर मनुष्य को जीवन की सच्चाई से रूबरू करवाया।
वर्तमान में संत शिरोमणि श्री गुरु रविदास जी की वाणी का समाज में प्रचार करते हुए हम सभी सच्चाई व ईमानदारी से अपने जीवन में भी अनुसरण करें। जिससे धार्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय एकता मजबूत होगी तथा भारतवर्ष का फिर से विश्व गुरु बनने का मार्ग प्रशस्त होगा।
 

लेखक--- सतीश मेहरा
उप‌ निदेशक, सूचना एवं जनसंपर्क (से.)
हरियाणा राजभवन।
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