शनि अमावस्या (17 मार्च, शनिवार)
शास्त्रों में शनि अमावस्या को पितृकार्यों की अमावस्या भी कहा जाता है। कहा जाता है कि इस दिन कालसर्प योग, शनि की साढ़े साती आदि के लिए पूजा आदि करने से शांति मिलती है। इसलिए इस दिन शनिदेव का विशेष पूजन और अर्चन किया जाता है। इससे प्रसन्न होकर शनिदेव उपासक की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। ऐसा विश्वास है कि शनिदेव को अमावस्या अधिक प्रिय है। इसलिए शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिये पूरे विधि विधान के साथ उनका पूजन करना चाहिए। इस दिन पूर्वजों के निमित्त तर्पण आदि करके यथाशक्ति दान अवश्य देना चाहिए।
चैत्र अमावस्या (17 मार्च, शनिवार)
हिंदू धर्म में चैत्र अमावस्या को विशेषरूप से महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन स्नान, दान आदि विशेष कार्यों का विधान है। अमावस्या को पितरों के तर्पण आदि के लिए विशेष दिन के रूप में परिगणित किया गया है। ऐसा माना जाता है कि अमावस्या वाले दिन व्रत रखते हुए पितरों के लिये तर्पण आदि किया जाए तो पितर प्रसन्न होते हैं और उनकी संततियों को अमोघ फल की प्राप्ति होती है। चैत्र अमावस्या का विशेष महत्व: चैत्र अमावस्या वाले दिन गंगा, यमुना आदि पुण्यसलिला नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। स्नान के पश्चात् सूर्यदेव को अर्घ्य आदि देकर पितरों का तर्पण करना चाहिये। अमावस्या वाले दिन निर्धनों को दान अवश्य देना चाहिए।
पापमोचनी एकादशी (13 मार्च, मंगलवार)
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी के व्रत का विधान है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि जिस एकादशी के व्रत से सभी पापों से मुक्ति मिल जाए उसे ही पापमोचनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु का पूजन और व्रत किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से व्रती के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
इस सप्ताह के व्रत और त्योहार
(12 मार्च से 18 मार्च 2018)
मासिक शिवरात्रि व्रत
(15 मार्च, गुरुवार)
प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के दिन शिवरात्रि का व्रत रखने का विधान है। इस दिन भगवान शिव को समर्पित यह व्रत सब प्रकार की मनोकामनाओं को पूरा करने वाला बताया गया है। संपूर्ण शास्त्रों और अनेक प्रकार के धर्मों के आचार्यों ने इस शिवरात्रि व्रत को सबसे उत्तम बताया गया है। इस व्रत से उपासक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। व्रत रखने वाले उपासक को यह व्रत प्रात: काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यंत तक करना चाहिए। रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करनी चाहिए और ‘ओम् नम: शिवाय’ का जप करते रहना चाहिये।
प्रदोष व्रत
(14 मार्च, बुधवार)
जिस तरह हर महीने के दोनों पक्षों में एक-एक बार एकादशी का व्रत होता है, ठीक उसी प्रकार त्रयोदशी को प्रदोष का व्रत रखा जाता है। यदि एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है तो त्रयोदशी का व्रत भगवान शंकर को। क्योंकि त्रयोदशी का व्रत शाम के समय रखा जाता है इसलिए इसे प्रदोष व्रत कहा जाता है। सोमवार को यदि त्रयोदशी हो तो उसे सोम प्रदोष कहा जाता है और यदि मंगलवार को हो तो उसे भौम प्रदोष कहा जाता है। यह व्रत भगवान शिव को समर्पित है, इसलिए इस दिन उन्हीं की पूजा और अर्चना की जाती है। ऐसा विश्वास है कि शिवजी की कृपा प्राप्त करने और पुत्र प्राप्ति की कामना से इस व्रत को किया जाता है। इस दिन ब्रह्मवेला में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर सबसे पहले 'अद्य अहं महादेवस्य कृपाप्राप्त्यै सोमप्रदोषव्रतं करिष्ये' यह कहकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और फिर शिवजी की पूजा अर्चना करके सारा दिन उपवास रखना चाहिए। शाम के समय एक बार फिर से स्नान करके महादेव की अर्चना करके अन्न ग्रहण करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस दिन प्रदोष के समय भगवान शिव कैलाश पर्वत पर अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं और देवता उनकी स्तुति करते हैं।
डॉ. अश्विनी शास्त्री
इस सप्ताह के बारे में विशेष : वर्तमान सप्ताह का शुभारंभ चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के साथ हो रहा है। चैत्र मास का यह कृष्ण पक्ष आगामी 17 मार्च को समाप्त हो जाएगा और उसके बाद अगले दिन से यानी 18 मार्च से नवरात्र के साथ शुक्ल पक्ष प्रारंभ हो जाएगा। इसी सप्ताह 14 मार्च से पंचक भी लग रहे हैं जो 18 मार्च को समाप्त हो जाएंगे। इस सप्ताह पाप मोचिनी एकादशी, प्रदोप व्रत, मासिक शिवरात्रि व्रत, चैत्र अमावस्या, शनि अमावस्या, आदि का आयोजन किया जाएगा।