लेखक एवं पत्रकार पवन कुमार बंसल।
वैदिक जी का अकस्मात निधन पूरे पत्रकारिता संसार और खासतौर पर हिंदी प्रेमियों के लिए जबरदस्त आघात है। मेरा उनसे परिचय करीब दस वर्ष पूर्व हमारे सांझे मित्र अरुण जोहर ने करवाया था। मेने वैदिक जी को अपनी तीन किताबे जिनमे से दो का विमोचन श्री प्रभाष जोशी ने किया था दी तो वे मुझसे ज्यादा स्नेह करने लगे क्योंकि वे दोनों इंदौर से थे। चूकि गुरुग्राम में मेरा निवास उनके निवास के नजदीक है इसलिए कई बार में सुबह सैर करता हुआ उनके घर पहुंच जाता था। तब वो एक दर्जन हिंदी और अंग्रेजी के अख़बार पढ़ रहे होते थे। मेने उनके कई लेखो का अंग्रेजी अनुवाद करके अपने कालम में भी छापा।
उनके इतने यादे है की पूरी किताब में भी नहीं आ सकती।
एक नेक दिल इंसान और हमेशा खुश रहने वाले थे। जो भी मदद के लिए आता उसकी सहायता करते थे। में उनके साथ कई बार पत्रकारों के कार्यक्रम में हरिद्वार में और पंचकूला में गया। मुझे वे अपने परिवार का सदस्य मानते थे और खुलकर चर्चा करते थे। पुराने किस्से सुनाते थे।
उनके पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी से पारिवारिक सम्बन्ध थे। उनक ड्राइंग रूम किताबो से भरा रहता था।
अरुण जोहर ,मेने और हमारे मित्र फरीदाबाद के गोयल साहिब ने गुरुग्राम में पत्रकारिता यूनिवर्सिटी बनाने की योजना भी बनाई थी जो सिरे नहीं चढ़ सकी।
कई बार तो सुबह जब मेड नहीं आई होती तो चाय खुद बनाकर पिलाते थे। गजब की ऊर्जा थी। लेखन कंप्यूटर की बजाय हाथ से करते और फिर उनका निजी सचिव मोहन टाइप करके अखबारों में भेजता था। मेमोरी भी बहुत तेज थी। सारा घटनाक्रम उन्हें याद था।
सादा भोजन करते थे। पेड़ पोधो और बागवानी का शौक था और उनका निवास पेड़ पोधो से भरा रहता था। कई बार तो खुद पानी देते।