Monday, December 29, 2025
Follow us on
BREAKING NEWS
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की अध्यक्षता में हुई हाई पॉवर्ड वर्क्स परचेज कमेटी की बैठकविकसित भारत 2047 के विजन और देश की तरक्की को देखकर पूरी दुनिया की नजर है भारत पर : नायब सिंह सैनीसुधार के साथ नवाचार कौशल को बढ़ावा दे रही प्रदेश सरकार : डॉ अरविंद शर्मामन की बात’ से देश को जागरूक करते हैं प्रधानमंत्री मोदी- विजपानीपत से दरियापुर मोड़ तक फोरलेन कार्य के लिए सड़क का लगा टेंडरमुख्यमंत्री ने खरखौदा में घोषणाओं की लगाई झड़ी, विकास में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जाएगीऊर्जा मंत्री अनिल विज ने साहिबजादों की महान शहादत को किया नमन : अनिल विजसंत, महापुरुषों और वीर शहीदों का जीवन हम सबके लिए प्रेरणास्रोत - कृष्ण बेदी
 
National

भावना तो तर्क वितर्क से परे होती है!

January 19, 2022 07:12 PM
डॉ कमलेश कली 
बचपन से ही मेरी मां हम सब को  खाना खाने से पहले भगवान को भोग लगाने के लिए कहती थी, और कुछ नहीं तो कृष्ण अर्पणं बोल दो ऐसा कहती थी। घर में विशेष अवसरों पर विधिवत भोग लगता था और ऐसा माना जाता था कि भोग लगाने से सब प्रभु प्रसाद बन जाता है, फिर तेरा मेरा नहीं रहता,बरकत भी रहती है,रज भी होता है अर्थात तृष्णा नहीं रहती। मंदिर, गुरुद्वारे और सब धर्म स्थलों पर भोग लगाने और फिर प्रसाद वितरण करने के अपनी  अपनी प्रथा होती है पर किसी न किसी रूप में  अर्पित जरुर किया जाता है, यहां तक यज्ञ करते हुए भी नैवेद्य समर्पित किया जाता है।एक बार एक छात्र ने अपने गुरु जी से इस संदर्भ में सवाल किया कि हम यूं ही भगवान को भोग लगाने की प्रथा निभाते हैं, क्योंकि भगवान तो खाता ही नहीं, अगर भगवान खाता तो अर्पित हुई वस्तु ,खाद्य पदार्थ  कम होना चाहिए ,जब भगवान खाते ही नहीं तो फिर भोग लगाने न लगाने से क्या फर्क पड़ता है। गुरु जी उस छात्र के सवाल पर उस समय तो चुप रहे , थोड़ी देर में उस छात्र बुलाकर पुस्तक से एक श्लोक याद करने को कहा ,तुभ्यम वस्तु गोविन्दं,तुभ्यमेव समर्पेयते,गृहाण सम्मुख हो भुत्वा, प्रसीदं परमेश्वर:, छात्र ने थोड़ी देर में श्लोक कंठस्थ कर लिया और गुरु जी को सुनाने लगा। गुरु जी बोले नहीं तुम्हें याद नहीं हुआ। छात्र ने आग्रह कर के कहा ,आप चाहे तो पुस्तक में देख सकते हैं।तब गुरु जी बोले, श्लोक तो किताब में वैसे का वैसा है,पर तुम्हारे पास कैसे आ गया?इस पर छात्र चुप हो गया,तब गुरु जी ने समझाया कि पुस्तक में जो श्लोक है,वह स्थूल है, तुमने कंठस्थ कर लिया तो सूक्ष्म रूप से श्लोक तुम्हारे दिमाग में चला गया, श्लोक वहां पुस्तक में भी वैसे का वैसा है, और  तुम्हारे दिमाग ने भी याद कर इसे गृहण कर लिया है। ऐसे ही जब हम भगवान को भोग लगाते हैं तो भगवान हमारी भावना अनुसार उसकी भासना लेते हैं, स्थूल रूप से चाहे वस्तु और खाद्य पदार्थ कम नहीं होता,पर हमारी भावना वहां तक पहुंचती है। शिष्य को अपनी बात का उत्तर मिल गया, और उसे समझ में आ गया कि भावना तो तर्क वितर्क से परे होती
Have something to say? Post your comment
More National News
गोवा सरकार ने नियमों के उल्लंघन पर अंजुना बीच पर स्थित कर्लीज नाइटक्लब को सील किया नेशनल हेराल्ड केस: ईडी ने सोनिया-राहुल गांधी को मिली राहत को दिल्ली HC में चुनौती दी जम्मू कोर्ट में NIA आज दाखिल करेगी पहलगाम आतंकी हमले से जुड़ी चार्जशीट सूरत: धुलिया चौकड़ी के कबाड़ गोदामों में लगी भीषण आग, 6–7 स्टोर जलकर खाक PM मोदी के खिलाफ कांग्रेस के नारे पर संसद में बिफरा सत्ता पक्ष, जेपी नड्डा ने की माफी की मांग सरकार ने MGNREGA को खत्म करने के लिए VBGRAM (ग्रामीण) बिल लोकसभा में सर्कुलेट किया महात्मा गांधी का नाम क्यों हटाया जा रहा', मनरेगा का नाम बदलने पर बोलीं प्रियंका
नितिन नबीन बने BJP के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व गृह मंत्री शिवराज पाटिल के निधन पर जताया शोक महाराष्ट्र: कांग्रेस नेता और पूर्व गृह मंत्री शिवराज पाटिल का लातूर में निधन