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75वें जन्मदिवस पर विशेष,जीवन का अमृत महोत्सव ; हुड्डा की सोच शिक्षित,स्वस्थ, सुसंस्कृत व समृद्ध समाज सृजन की:एम.एस चोपड़ा

September 14, 2021 07:38 AM
जीवन के अमृत महोत्सव की दहलीज पर  15 सितंबर को भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने आयु के 75वें वर्ष में पदार्पण किया है। इस जीवन यात्रा में कई उतार-चढ़ाव पार करते हुए गरिमा और गंभीरता के साथ आगे बढ़ते रहे हैं। जीवन सफर में स्नेह,सम्मान,पद और प्रतिष्ठा ही नहीं मिली बल्कि कष्ट और कठिनाईयां भी झेली। जीवन पथ पर चलते-चलते पांव में छाले भी पड़े,सड़कों पर खून-पसीना भी गिरा,गर्मी-सर्दी भी झेली,साजिशें भी हुई। इनकी ज़िन्दगी के धूप-छांव भरे सफ़र में मैं तीन दशकों से भी अधिक समय से इनके साथ चला और मैंने जो अनुभव किया वह जिंदगी के इस महत्त्वपूर्ण पड़ाव के अवसर पर सबसे साझा कर रहा हूँ। यह सब मैंने ही नहीं बल्कि तमाम हरियाणावासियों ने भी ऐसा ही अनुभव किया है। 
    भूपेंद्र सिंह हुड्डा करीब साढ़े नौ वर्ष तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे । इनके कार्यकाल में बने मेडिकल कॉलेज, मेट्रो, स्कूल, सड़क, स्टेडियम, बिजली घर, विश्वविद्यालय, एम्स, आई.आई.एम., एन.आई.टी. आदि अनेकों संस्थाएं व संस्थान प्रदेश के भौतिक विकास के स्तम्भ भी हैं औऱ साक्षी भी। हुड्डा की सोच एक शिक्षित, स्वस्थ, सुसंस्कृत और समृद्ध समाज सृजित करने की है। जिसमें सबको सम्मान और सबकी प्रतिभा को समान अवसर मिले। केवल भौतिक विकास ही पर्याप्त नहीं, बल्कि शिक्षा और मानवीय मूल्यों की स्थापना से ही समग्र विकास संभव है। 
   राजनीतिक आचरण की दिशा में इन्होंने सबूतों से परे संकेतों के माध्यम से राजनीति व समाज के गिरते स्तर को ऊपर उठाने के भगीरथ प्रयास किये, जिससे हरियाणा की राजनीति का मकसद और मायने बदल गए। यह कोशिश अदृश्य अवश्य थी, लेकिन इसका अहसास जन मानस के भीतर गहरा उतर गया। राजनीति में शिष्टचार, सदाचार और सभ्यता बड़ा ही सुखद परिवर्तन था, जिससे आम आदमी को जीवन में गौरव और गरिमा का अनुभव हुआ। 
   प्रदेश की राजनीतिक बागडोर संभालते ही इन्होंने अपनी सोच, स्वभाव और संस्कार के अनुसार अनेक राजनीतिक कार्यक्रमों व स्वागत समारोहों में लोगों को नोटों की माला डालने की मनाही की। माला छोटी होने के कारण अपने नेताओं का स्वागत करने में झिझकने वाले एक गरीब की झिझक खत्म हो गई।  रैली और थैली की जो राजनीतिक संस्कृति हरियाणा में वर्षों से पनप रही थी, उस पर पूर्ण विराम लगा । नेताओं का स्वागत फूलों व खादी की मालाओं से होने लगा। यही नहीं, सरकारी मशीनरी के राजनीतिक दुरुपयोग पर भी विराम लगाया, बेगार  प्रथा बंद कर दी। सरकारी कर्मचारी, व्यापारी और आम-जन ने शोषण बंद होने से राहत की सांस ली। आज किसी भी पार्टी का कोई नेता जनता में नोटों की माला से स्वागत करवाने की हिम्मत नहीं कर सकता। यह हरियाणा की राजनीतिक संस्कृति का पतन रोकने की महत्वपूर्ण पहल थी। इन्होंने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में हरियाणा की राजनीतिक सत्ता के दबदबे, ताम-झाम, धनबल-बाहुबल को मिटाकर राजनीतिक वातावरण में शुचिता, स्वच्छता, सभ्यता और सौहार्द लाने का पूर्ण प्रयास किया। 
     भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने ‘मनसा-वाचा-कर्मणा’ यानी मन,वचन,कर्म,आचार-विचार और व्यवहार से राजनीतिक क्षेत्र में नए उच्च मानदंड स्थापित किये। हरियाणा की राजनीति में द्वेष, दुर्भावना, प्रतिशोध, अहंकार, रंजिश, नफरत की रवायत का बोलबाला था। यहां तक कि परस्पर राजनैतिक विरोधियों ने एक दूसरे को हथकड़ियाँ तक लगवाई। अपने राजनैतिक विरोधियों व विपक्ष के प्रति अभद्र व ओछी टिप्पणी करना,एक दूसरे को नीचा दिखाना, व्यक्तिगत व पारिवारिक जीवन के बारे में सतही और औछी बात करना, झूठे लांछन लगाना आम बात थी।  नकारात्मकता हरियाणा की राजनीति का प्रतीक थी। लगभग दस वर्ष के कार्यकाल में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कई सहयोगियों के दबाव व उकसाने के बावजूद अपने किसी भी राजनैतिक विरोधी के खिलाफ द्वेष, रंजिश या बदले की भावना से एक भी केस दर्ज नहीं किया और न ही किसी को प्रताड़ित किया। सौम्यता और सद्भाव के वातावरण में प्रदेश समृद्धि की ओर तेजी से बढ़ा। 
     इन्होंने प्रशासन की निष्ठुरता को मानवीय मूल्यों, संबंधों और संवेदनाओं से जोड़ सत्ता को समाज सेवा का माध्यम बनाया। विनम्रता और विकास इनके पर्यायवाची बन गये थे। इनके कार्यकाल में असहाय को सहारा, गरीब की गरिमा बढ़ी, जन-भावना का सम्मान हुआ और समाज को सियासत और सत्ता से बड़ा मना गया। प्रशासन की कल्याणकारी सोच और पहुँच का लाभ समाज के उपेक्षित, वंचित, दबे–कुचले लोगों, दिव्यांगों, दृष्टिहीन, अनाथों, किन्नरों और बौनों तक मिला। 
    हुड्डा का मानना है कि शिक्षा के बिना समाज की प्रगति नहीं हो सकती। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए उन्होंने समाज के कमजोर, वंचित वर्गों के शिक्षण से सशक्तिकरण के लिये देश की सबसे बड़ी छात्रवृत्ति योजना लागू कर सामाजिक प्रगति की ओर बड़ा कदम उठाया। इससे सबसे गरीब को भी सबसे अच्छी शिक्षा हासिल करने का सामान अवसर मिल पाया और कोई भी गरीब धनाभाव के चलते शिक्षा से वंचित नहीं रहा। इसी तरह आज हरियाणा की बेटियां रक्षाबंधन पर्व पर अपने भाईयों को राखी बांधने हरियाणा रोडवेज की बसों में जब बिना किराया दिए यात्रा करती हैं तो उन्हें इनके शासनकाल की याद आती है। अपने सियासी सफर में हुड्डा ने इंसानियत की जो इबारत लिखी वह हरियाणा वासियों के दिलों में गहरी खुदी हुई है। 
    भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मुख्यमंत्रित्व काल की तुलनात्मक तथा सम्पूर्ण समीक्षा तो इतिहास के पन्नों पर दर्ज होंगी, लेकिन आने वाली पीढियां इनके स्वस्थ, शिक्षित और सभ्य समाज के निर्माण की दिशा में किए प्रयासों की सराहना अवश्य करेगी। इनके प्रयासों को साहिर लुधियानवी का एक शेर प्रासंगिक करता है….  
                                         माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके,
कुछ खार तो कम कर गए गुज़रे जिधर से हम।
                                                                                      
  यह सफर और कारवां बदस्तूर जारी रहे। 
समाप्त
लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं एंव भारत सरकार में उपसचिव रहे हैं।  
 
 
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