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Dharam Karam

दीपावली के पावन पर्व पर बाहरी स्वच्छता के साथ आंतरिक शुचिता पर भी ध्यान दे !

November 13, 2020 05:40 AM


डॉ कमलेश कली
इस बार दीपावली के पावन पर्व पर कोरोना महामारी की काली छाया तथा उससे उत्पन्न मंदी, आर्थिक तंगी और समाजिक मेलजोल पर प्रतिबंध के चलते वातावरण में उमंग उत्साह की जगह अजीब सी उदासी पसरी हुई है।अब की बार बाहरी और शारीरिक स्वच्छता और सफाई के साथ अंदर की सफाई सच्चाई अर्थात मन और चित्त की सफाई, दूसरे शब्दों में अंदर के कलुष को साफ कर निर्मल बनाने की महती आवश्यकता है। जिस प्रकार लक्ष्मी जी का आह्वान करने से पहले घर आंगन साफ करते हैं, रोशनी करते हैं उसी तरह हमारे मनों में सुख-शांति, प्रसन्नता और आह्लाद का अनुभव तभी होता है जब मन अहंकार,काम , क्रोध,लोभ मोह और अन्य विकारों से मुक्त होता है। उदासी और विषाद के जाले, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा और नफ़रत की जो धूल मिट्टी मन और बुद्धि पर छा जाती है तो विवेक शक्ति खत्म होने से ग़लत काम होने लगते हैं और जीवन दुःख से भर उठता है।मन के सशक्त होने से तथा अंतःकरण के निर्मल हो जाने से अपने स्वरुप जो कि सत, चित् आनन्द है उसका अनुभव किया जा सकता है और फिर बाहरी जगत भी सत्यम शिवम सुंदरम प्रतीत होने लगता है।
कहते हैं कि प्रकाश को जीवन में दो तरह से लाया जा सकता है एक तो स्वयं दीपक बन कर ,जल कर उजाला किया जा सकता है और दूसरा तरीका है दर्पण बन कर विद्यमान प्रकाश को प्रतिबिंबित करना। अपने अंदर के अंधेरे को,कलुष को साफ कर दर्पण की तरह पावन बन कर अपने गुण और शक्तियों के प्रकाश को अपने आसपास को उज्जवल बनाना।समाज में फैले अज्ञान रूपी अंधेरे को दूर करने, समाजिक कुरीतियों और रूढ़ियों के बंधन तोड़ने और अन्याय और शोषण आधारित व्यवस्था को बदलने के लिए सामुहिक प्रयास जरूरी है।
महाभारत का प्रसंग है , महाभारत के 18 दिन के युद्ध की समाप्ति पर विजय के बाद पांचों पांडव, द्रौपदी सहित भीष्म पितामह से, जो कि शरशैया पर लेटे , मृत्यु के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार कर रहे थे, उनसे आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं। भीष्म उन्हें धर्म, नीति और आचरण संबंधी उपदेश देते हैं, जिन्हें सुनकर द्रौपदी हंसने लगती है और पूछती है कि आज आप धर्म, न्याय और नीति के उपदेश दे रहे हो ,जब मेरा चीर हरण हो रहा था,एक अबला नारी का अपमान किया जा रहा था, जब पांडवों के साथ छल कपट और अन्याय किया जा रहा था,तब आप मौन थे, आपका यह ज्ञान कहां खो गया था?"इस पर भीष्म पितामह कहते कि "दुर्योधन "का अन्न खाने से मेरा मन विकृत हो गया था, अर्जुन के तीरों से वह कलुषित रक्त बह गया है और अब मेरा मन पवित्र और स्वस्थ हो गया है, इसलिए अब कर्तव्य बोध जाग गया है।"पर इस संवाद के गहरे अर्थ है । भीष्म के अंदर का कलुष,मन में फैला अंधेरा अर्जुन के तीरों से रक्त बहने से नहीं , अपितु उनके आत्म चिंतन और आत्म निरीक्षण से दूर हुआ था। तो आओ हम सब भी प्रकाश के इस पर्व पर आत्म दीपक जलाएं और अपने मन और बुद्धि को आलोकित करें।आत्म चिंतन,मनन और विश्लेषण द्वारा अपनी कमियों, खामियों को पहचान कर उन्हें दूर करने के लिए कृत संकल्प हों तभी अज्ञान के अंधेरे दूर होंगे।

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