डॉ कमलेश कली
आज दस अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस है और इस कोविड 19 महामारी ने मानसिक स्वास्थ्य के लिए अलग तरह से चुनौतियों को जन्म दिया है। इसलिए इस वर्ष विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस अभियान के उद्देश्यों में इस क्षेत्र में जागरूकता के साथ और अधिक निवेश करने की बात पर जोर दिया गया है। सोशल डिस्टेंसिंग और आइसोलेशन की जरूरत ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया है और नई समस्याओं को जन्म दिया है। आर्थिक मंदी और नौकरियों के जाने से निम्न मनोबल, चिंता, आशंका, घबराहट, डिप्रेशन जैसी मानसिक समस्याओं ने आम आदमी को अपनी लपेट में ले लिया है। देश में हाई-फाई खुदकुशी के मामले जैसे कि सुशांत सिंह राजपूत और कल ही नागालैंड के पूर्व राज्यपाल द्वारा खुदकुशी के समाचार के अलावा आये दिन पूरे परिवार के साथ अपनी जान लेने के मामले भी सुर्खियों में छाए रहते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि इस समय जब सब ओर से प्रेशर और तनाव है, तो ऐसे में भले-चंगे आदमी के लिए भी मानसिक संतुलन बनाए रखना एक बहुत बड़ी चुनौती है।
कहा जाता है कि भारत में जो बड़े बड़े संत सम्मेलन और सत्संग होते हैं वो आम व्यक्ति के लिए मास साइकैट्री अर्थात सामूहिक मनोचिकित्सा का काम करते हैं, लेकिन अब इस समय तो कोरोना के चलते यह सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। पहले यह माना जाता रहा है कि मनोरोग तो पाश्चात्य जगत और संस्कृति की देन है और मन के रोग तो केवल अमीरों को ही होते हैं, गरीबों को नहीं। कुछ हद तक यह सही भी है क्योंकि अगर आपका पेट खाली हैं तो केवल एक ही समस्या है कि दो वक्त की रोटी का जुगाड कैसे किया जाए। लेकिन अगर आप का पेट भरा हुआ है तो आपके पास बाकी हर तरह की समस्या मुंह बाए खड़ी हो जाती है। अपने अस्तित्व बचाने की आवश्यकता अर्थात शारीरिक आवश्यकताओं के पूरा होते ही मानसिक आवश्यकताएं हावी हो जाती है।
गीता में भी अर्जुन एक मनोरोगी की तरह श्री कृष्ण से अपना हाल बयान करता है जिसे दूसरे अध्याय में विषाद योग का नाम दिया गया है। पुराने जमाने से ही सुनते आए हैं ,"मन के जीते जीत है मन के हारे हार", हमारा सारा संसार इस मन की ही उपज है,मन ही हमारी मुक्ति और बंधन का कारण है। इसलिए मन के सशक्तिकरण पर वैसा ही ध्यान दिया जाना चाहिए जैसे हम शारीरिक स्वास्थ्य पर देते हैं।यह भी सत्य है कि मन के अस्वस्थ होने पर शरीर भी अस्वस्थ होने लगता है।मन के सशक्तिकरण और स्वास्थ्य के लिए सकारात्मक सोच और आशावादी दृष्टिकोण होना लाज़िमी है, हालांकि मन और मस्तिष्क अभी भी विज्ञान के लिए अबूझ पहेली है। अभी भी हमारे यहां आम भाषा में मनोचिकित्सक को पागलों के डाक्टर के रूप में जाना जाता है, जबकि क्रोध और आवेश जो सभी में थोड़ी मात्रा में तो होते ही है वो भी क्षणिक पागलपन कहे जाते हैं। आज जब आई क्यु से ज्यादा इ क्यु अर्थात इमोशनल कोशिएंट को ज्यादा महत्व दे रहे हैं इसका सीधा सा अर्थ यह है कि भावनात्मक परिपक्वता मानसिक स्वास्थ्य का आधार है और जीवन में अति महत्त्वपूर्ण है। एक मशहूर कथन हैं कि आप अच्छा दीखते है,यह ठीक है। आप अच्छा महसूस करते हैं,यह और भी अच्छा है पर आप यथार्थ में अच्छे हैं यह सबसे बढ़िया है। इसके मायने यह है कि शारीरिक रूप से स्वस्थ होना एक बात है, मानसिक रूप से स्वस्थ होना और भी अच्छी बात है और पूर्ण रूप से स्वस्थ होना सबसे सुखद है।जब अंग्रेजी के शब्द इमपासिबल को आई एम पासिबल पढ़ते हैं तो अर्थ ही बदल जाते हैं, ऐसे ही जिंदगी में हर चीज के दो पहलू हैं,यह हमारे ऊपर है कि हम अपना फोकस किस पर करते हैं।कांच और हीरे में अंतर सिर्फ थोड़ी देर धूप में रख कर ही जाना जा सकता है,कांच जल्दी गर्म हो जाता है ऐसे ही मन में अधीरता और दुर्बलता गुस्सा लाती है।मन तो एक अंधेरी गुफा की तरह है जिसके बारे में बहुत कुछ विज्ञान को जानना बाकी है, फिर भी आज विश्व मानसिक दिवस पर स्वयं भी मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सचेत हो और दूसरों को भी मानसिक फिटनेस के प्रति जागरूक करें।