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हरियाणा में नगर निगमों को नगर परिषद में तब्दील करने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग ने लिया संज्ञान

October 03, 2020 03:29 PM

विकेश शर्मा

चंडीगढ़ - हरियाणा नगरपालिका (संशोधन) अधिनियम, 2020 , जो बीती 19 सितम्बर 2020 से लागू हुआ, द्वारा उत्पन्न हुई एक कानूनी विसंगति को उजागर करती भेजी गई एक पत्र याचिका पर हरियाणा के राज्य निर्वाचन आयोग ने संज्ञान लिया है एवं प्रदेश के निदेशक, शहरी स्थानीय निकाय विभाग को गत 29 सितम्बर को लिखकर इस सम्बन्ध में विचार कर आवश्यक कार्यवाही करने को कहा है. पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार, जिन्होंने गत माह 21 सितम्बर को आयोग को ईमेल याचिका भेजी दी ने बताया कि हरियाणा नगरपालिका (संशोधन) कानून,2020 लागू होने के बाद हरियाणा के दस जिला मुख्यालयों पर बीते कई वर्षो से स्थापित नगर निगमों के अस्तित्व पर कानूनी प्रश्न चिन्ह उत्पन्न हो गया है क्योंकि एक नए कानूनी प्रावधान अनुसार उक्त जिला मुख्यालयों पर कानूनन नगर निगम नहीं बल्कि नगर परिषद होंगी. ताज़ा संशोधन कानून के द्वारा मूल हरियाणा नगरपालिका अधिनियम, 1973, की धारा 2 ए में जो संशोधन हुआ है उसके अनुसार हरियाणा के सभी जिला मुख्यालयों पर विद्धमान /स्थापित मुनिसिपलिटीज़ ( नगर निकाय) का स्तर नगर परिषद का होगा चाहे वहां की जनसँख्या कितनी भी हो. हरियाणा नगरपालिका कानून,1973 की धारा 2 ए में हरियाणा में सभी शहरी नगर निकायो का वर्गीकरण है जिसके अनुसार 50 हज़ार तक की जनसँख्या वाले छोटे शहरी इलाको में नगर पालिका, 50 हज़ार से अधिक एवं तीन लाख से कम आबादी वाले अर्थात मध्यम शहरो में नगर परिषद जबकि तीन लाख से ऊपर की जनसँख्या वाले बड़े नगरों/महानगरों में नगर निगम होगी. उन्होंने बताया कि हरियाणा में नगर निकायो का वर्गीकरण (नगर निगम सहित ) हरियाणा नगरपालिका कानून में ही है एवं वर्ष 2002 में जब तत्कालीन चौटाला सरकार ने नगर निगम के लिए आवश्यक जनसँख्या की सीमा को न्यूनतम 5 लाख से घटाकर 3 लाख किया, तब भी हरियाणा नगरपालिका कानून.1973 में ही कानूनी संशोधन किया गया था.गौरतलब है कि प्रदेश में सबसे पहला नगर निगम भजन लाल सरकार के दौरान वर्ष 1994 में फरीदाबाद में स्थापित हुआ जबकि जून, 2008 में भूपिंदर हुड्डा शासनकाल में पहले गुरुग्राम की नगर परिषद को एवं इसके बाद मार्च, 2010 में अम्बाला, करनाल, पानीपत, पंचकूला, हिसार, रोहतक और यमुनानगर की नगर परिषदों को नगर निगम के रूप में अपग्रेड किया गया. खट्टर सरकार ने जुलाई, 2015 में सोनीपत की नगर परिषद का भी दर्जा बढ़ाकर नगर निगम कर दिया. इस समय हरियाणा के कुल 22 ज़िलों में से उक्त 10 जिला मुख्यालयों पर नगर निगम जबकि 11 - कैथल, थानेसर (कुरुक्षेत्र), सिरसा, जींद, फतेहाबाद, भिवानी, चरखी दादरी, पलवल, रेवाड़ी, नारनौल और झज्जर में नगर परिषद है. केवल नूहं ज़िले में ही नगरपालिका है . चूँकि मौजूदा सरकार नूहं जिला मुख्यालय में भी नगर परिषद स्थापित करना चाहती है हालांकि वहाँ की जनसँख्या वर्ष 2011 की जनगणना अनुसार 16 हज़ार 260 थी जो वर्तमान में बढ़कर 24 हज़ार 390 ही हुई है एवं इस प्रकार यह सीमा 50 हज़ार से कम होने के कारण कानूनी रूप से नूहं नगर पालिका को नगर परिषद के रूप में अपग्रेड का मापदंड पूर्ण नहीं करती, इसलिए ऐसा करने के लिए हरियाणा नगरपालिका कानून, 1973 की धारा 2 ए में उपयुक्त संशोधन करना आवश्यक है जिसके लिए ताज़ा संशोधन कानून द्वारा प्रावधान किया गया है कि "परन्तु किसी जिला मुख्यालय पर विद्धमान /स्थापित शहरी नगर निकाय इसकी जनसँख्या पर विचार किये बिना नगर परिषद होगी। हालाकि हेमंत का मानना है कि अगर कानूनन निर्धारित की गयी जनसँख्या की सीमा से कम आबादी होने के बावजूद भी सरकार को नूहं जिला मुख्यालय में नगर परिषद स्थापित करनी है, तो संशोधन कानून में स्पष्ट रूप में उल्लेख करना चाहिए कि जनसँख्या के बावजूद जिला नूहं मुख्यालय पर नगर परिषद होगी. हर जिला मुख्यालय में विद्धमान/स्थापित शहरी निकाय के लिए नगर परिषद होने का उल्लेख करना निश्चित रूप से भ्रम उत्पन्न करता है एवं हरियाणा के दस जिला मुख्यालयों पर स्थापित नगर निगमों के कानूनी अस्तित्व पर भी गंभीर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है. अब ताज़ा नगरपालिका संशोधन अधिनियम लागू होने के बाद कानूनन 3 लाख से ऊपर जनसँख्या वाले प्रदेश के बड़े नगरों में तो नगर निगम स्थापित हो सकती है परन्तु जिला मुख्यालयों पर कानूनन नगर परिषद ही होगी बेशक वहां जनसँख्या 3 लाख से ऊपर हो. यह बेहद विचित्र स्थिति हो जायेगी. वर्तमान में हरियाणा में 10 नगर निगम, 21 नगर परिषदें और 57 नगर पालिकाएं हैं. प्रदेश के 11 जिला मुख्यालयों के अलावा दस अन्य शहरो - अम्बाला सदर, गोहाना, बहादुरगढ़, होडल, सोहना, हांसी, टोहाना, मंडी डबवाली, नरवाना और कालका में भी नगर परिषद है.अब चूंकि हरियाणा नगरपालिका (संशोधन) अधिनियम, 2020 गत माह से लागू हो गया है, अब देखने लायक होगा कि प्रदेश सरकार ताज़ा संशोधन कानून द्वारा हर जिला मुख्यालय में जनसँख्या के बावजूद नगर परिषद होने सम्बन्धी प्रावधान से उत्पन्न हुई विसंगति को कैसे दूर करती है ? हेमंत का कहना है कि या तो तत्काल रूप में राज्यपाल से अध्यादेश जारी करवाकर अथवा आगामी विधानसभा सत्र में सदन द्वारा उपयुक्त विधेयक पारित करवाकर इसे सुधारा जा सकता है.

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