डॉ कमलेश कली
गीता का प्रसिद्ध श्लोक है उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मनवसादयेत आत्मैव ह्मत्मनो बंधुरात्मैव रिपुरात्मनः ।। इसके अर्थ है कि मनुष्य अपने उद्धार और अधोगति के लिए स्वयं ही जिम्मेदार है क्योंकि यह मनुष्य आप ही अपना मित्र हैं और आप ही अपना शत्रु है। मनुष्य अपने विवेक का प्रयोग करके जीवन में ऊँचाइयों को छू सकता है और विकारों में फंसकर अपना अमूल्य जीवन बर्बाद भी कर सकता है। कहते हैं कि अपनी प्रगति में सबसे बड़ी बाधा कहीं बाहर से नहीं आती अपितु हम स्वयं अपने लिए बाधा स्वरूप बन जाते हैं। एक बार एक कंपनी में कर्मचारी जब सुबह पहुंचते हैं तो नोटिस बोर्ड पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा पढ़ते हैं कि आपकी तरक्की में जो मुश्किलें पैदा कर रहा था, उसकी मृत्यु हो गई है, उसको नीचे जिम में कोफिन में रखा गया है, कृपया उनके दर्शन अवश्य करके जाएं। पहले तो सभी अपने मन में ख़ुश हो जाते हैं कि जो हमारे लिए दिक्कतें पैदा कर रहा था, अच्छा है बला टली, उससे छुटकारा मिला। फिर सोचने लगते हैं, नहीं फिर भी वह हमारे संगठन का सदस्य था, चलकर देखना चाहिए।सब बारी बारी वहां जिम में नीचे रखे कोफिन में देखते हैं तो भौंचक रह जाते हैं।उस कोफिन में एक दर्पण होता है, जिसमें उन्हें अपनी शक्ल दिखाई देती है। उन्हें यह समझाने के लिए कि उनकी प्रगति में, आगे बढ़ने में,वो स्वयं ही सबसे बड़ी रुकावट है। अभिप्राय यह कि मनुष्य अपने ही कारण आगे बढ़ता है और अपने ही सोच के कारण पीछे रह जाता है, नकारात्मक सोच, अपनी कमियों और कमजोरियों पर काम करने की बजाय, उनमें फंस कर अपने पांव पर स्वयं ही कुल्हाड़ी मार लेता है। ऐसे ही एक और दृष्टांत प्रबंधन की कक्षाओं में दिया जाता है।एक कंपनी जिसकी सारी कोशिशों के बाद भी बिक्री नहीं बढ़ रही थी,वो कन्सल्टंट के पास अपनी समस्या लेकर जाते हैं।वो सलाहकार आकर अध्ययन करता है कि उत्पाद भी बढ़िया है, कीमत भी सही है फिर भी बिक्री क्यों नहीं बढ़ पा रही तो वह उस कंपनी की सेल्स फोर्स से मिलता है और बात करता है। उसे कुछ समझ में आता है तो उन सबको बुलाता है और बोर्ड पर एक सफेद पृष्ठ पर एक काला बिंदु लगा उन सबसे पूछता है कि उन्हें क्या दिखाई दे रहा है।सब एक ही उत्तर देते हैं कि काला बिंदु -ब्लेक डाट दिखाई दे रहा है।तब वह उन्हें अहसास दिलाता है कि इतना बड़ा सफेद पृष्ठ उन्हें नहीं दिखाई दिया, उन्होंने देखा तो केवल काला बिंदु, अर्थात हमारे चारो और अनंत संभावनाएं उस सफेद पृष्ठ की तरह फैली हुई है, पर हम केवल काले बिंदु अर्थात एक कमी कमज़ोरी पर ही केंद्रित हो जाते हैं । जो हमारे पास नहीं है,सारा ध्यान उस पर रहता है, जो हमारे पास है, उसको उपयोग में लाने से चूक जाते हैं। मनुष्य का स्वभाव ही ऐसा है कि वो अपने आप को संकुचित करता रहता है, जबकि वो चाहे तो अपनी चेतना को विकसित कर, कल्पना के खुले आसमान में पंख फैला उड़ सकता है। अपने को जान, अपने गुणों और विशेषताओं का मूल्यांकन कर निरंतर आगे बढ़ सकता है। ये उसकी इच्छा है कि सपने खुली आंखों से देखे या बंद आंखों से देखे और कहते हैं कि सपने नहीं टूटते,टूटती तो नींद हैं। इसलिए अज्ञान की नींद से जागने की जरूरत है