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27 सितम्बर आर.एस.एस. दिवस पर विशेष:भाजपा शासित हरियाणा में भी सरकारी कर्मचारी नहीं ज्वाइन कर सकते आर एस एस

September 26, 2020 09:27 PM

विकेश शर्मा

चंडीगढ़ - रविवार 27 सितम्बर 2020 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस. ) का 95वां स्थापना दिवस है. वर्ष 1925 में इसी दिन आर.एस.एस. की स्थापना की गयी थी जिसकी सदस्य संख्या आज पूरे देश में कई लाखों में है. विशेष तौर पर बीते छः वर्षो में अर्थात जब से नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने है, जो भाजपा में शामिल होने से पूर्व अपनी युवा अवस्था में कई वर्षो तक देश भर में आर.एस.एस. के प्रचारक रहे, के बाद सैंकड़ो लोग विशेषकर युवा वर्ग इस सामाजिक एवं हिन्दू राष्ट्रवादी संगठन के साथ जुड़े हैं.
हरियाणा में भी छः वर्षो पूर्व अक्टूबर, 2014 में भाजपा अपने दम पर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई एवं मनोहर लाल के रूप में एक कर्मठ एवं निष्ठावान पूर्व आर.एस.एस. स्वयंसेवक को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया जिन्होंने पांच वर्ष सरकार चलायी जिसके बाद गत वर्ष अक्टूबर, 2019 में उनके नेतृत्व में भाजपा ने पुन: जननायक जनता पार्टी (जजपा) के साथ और निर्दलीयों के सहयोग से गठबंधन सरकार बनायीं परन्तु प्रदेश सरकार के सरकारी कर्मचारियों द्वारा आर.एस.एस. की गतिविधियों में भाग लेने पर अनुशासनात्मक कार्यवाही करने सम्बन्धी अप्रैल, 1980 में तत्कालीन प्रदेश सरकार द्वारा जारी निर्देश आज तक लागू हैं जो की अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है.
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि जब गत वर्ष वह प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों के सम्बन्ध में हरियाणा सरकार द्वारा बीते कई वर्षो में जारी किये गए आधिकारिक निर्देशों एवं हिदायतो का अध्ययन कर रहे थे, तो उन्हें 2 अप्रैल 1980 को तत्कालीन प्रदेश सरकार द्वारा जारी एक सरकारी आदेश मिला जिसमे सरकारी कर्मचारियों के आर.एस.एस. की गतिविधियों में भाग लेने पर उनके विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करने के निर्देश को जारी रखने का पुन: निर्देश दिया गया. लिखने योग्य है सर्वप्रथम 11 जनवरी, 1967 को तत्कालीन हरियाणा सरकार जारी एक निर्देश में राज्य के सरकारी कर्मचारियों द्वारा आर.एस.एस. की गतिविधियों में भाग लेने को प्रतिबंधित किया गया था चूँकि राज्य सरकार ने पंजाब सरकारी कर्मचारी (आचार) नियमावली, 1966 (तब हरियाणा पर भी लागू) के नियम 5 (1) के तहत आर.एस.एस. को एक राजनीतिक संगठन माना था एवं इसकी गतिविधियों में भाग लेने पर सरकारी कर्मचरियो के विरूद्ध नियमानुसार अनुशासनात्मक कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए थे हालाकिं 4 मार्च, 1970 को एक अन्य सरकारी आदेश जारी कर तत्कालीन हरियाणा सरकार ने उक्त कार्यवाही करने पर रोक लगा दी गयी थी क्योंकि तब एक सम्बंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित था.
बहरहाल, उक्त 2 अप्रैल, 1980 को जारी एक अन्य सरकारी पत्र में स्पष्ट किया गया कि सुप्रीम कोर्ट में एक सम्बंधित मामले के लंबित होने के कारण हरियाणा में आर.एस.एस. की गतिविधियों में भाग लेने पर सरकारी कर्मचारियों के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करने में कोई रोक नहीं होगी. हेमंत ने बताया कि वो हैरान हुए कि हालांकि वर्ष 1980 के पश्चात भाजपा कई बार सहयोगी दल के रूप में हरियाणा की गठबंधन सरकारों में सत्ता में रही जैसे 1987 -89 में देवी लाल-चौटाला-हुकम सिंह दौरान सरकार में, फिर 1996 -99 दौरान बंसी लाल सरकार में और फिर 1999-2004 तक फिर चौटाला सरकार में परन्तु आर.एस.एस. की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के भाग लेने सम्बन्धी प्रतिबन्ध को क्यों नहीं हटवाया गया ?

इसी सम्बन्ध में हेमंत ने गत वर्ष 5 मार्च 2019 को हरियाणा के मुख्य सचिव कार्यालय के सामान्य प्रशासन विभाग में एक आरटीआई याचिका दायर कर इस सम्बन्ध में दो बिन्दुओ पर सूचना मांगी. पहले बिंदु के जवाब में उन्हें उपरोक्त उल्लेखित तीन हरियाणा सरकार द्वारा वर्ष 1967 , 1970 और 1980 में जारी पत्रों की प्रतियां प्रदान कर दी गयी और इसके साथ साथ हरियाणा सिविल सेवा (सरकारी कर्मचारी आचरण ) नियम, 2016 के नियम संख्या 9 और 10 का भी हवाला दिया गया. रोचक बात यह है कि यह नियम वर्तमान भाजपा सरकार द्वारा ही बनाये और जुलाई, 2016 से लागू किये गए. इसके अतिरिक्त उक्त 2 अप्रैल 1980 के जारी उक्त सरकारी निर्दश में बारे में यह सूचना दी गयी कि आज तक उसे वापिस नहीं लिया गया है.
हेमंत का मानना है कि अक्टूबर, 2014 में हरियाणा में भाजपा सरकार के बनते ही सरकारी कर्मचारियों के आर.एस.एस. ज्वाइन करने सम्बन्धी प्रतिबन्ध के निर्देश को तुरंत वापिस लिया जाना चाहिए था हालाकि आज तक ऐसा नही किया गया है. उन्होंने बताया कि वैसे भी वर्ष 1967 , 1970 और 1980 में हरियाणा सरकार द्वारा जारी पत्रों में आर.आर.एस को जमात-ए-इस्लामी के साथ जोड़ कर दर्शाया गया है जो कि सर्वथा अनुचित है. हेमंत ने इस सम्बन्ध में गत वर्ष हरियाणा के मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, आर.एस.एस. सरसंघचालक (प्रमुख) मोहन भागवत आदि को ईमेल भेज कर लिखा भी था परन्तु दुर्भाग्यवश आज तक इस सम्बन्ध में कोई कार्यवाही नहीं की गयी है.

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