डॉ कमलेश कली
कलियुग कलह क्लेश का युग कहा जाता है और अब कोरोनावायरस ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी है। आपसी विश्वास और प्यार, संबंधों में मधुरता और मिठास भावनात्मक स्तर पर जितनी जरूरत आज है, इतनी पहले कभी नहीं थी, क्योंकि सोशल डिसटेंसिंग के चलते इनकी महत्ता जीवन में और भी बढ़ गई है। पाश्चात्य जगत की जानी-मानी फैशन डिजाइनर,लेखक और ब्लागर किरजायदा रोड्रिगेज जो कि कैंसर से जीवन की ज़ंग लड़ रही है , बारे में पढ़ा, उन्होंने जीवन के कटु सत्य के बारे में लिखा है कि उनके पास बहुत बड़ा महल नुमा हर सुविधा से संपन्न घर है,पर वो अस्पताल में एक छोटे से बेड पर जिसमें कई टयुब और तारें लगी है, उसमें जकड़ी है और उनकी जिंदगी वही सिमट कर रह गई है। उनके पास बैंकों में बिलियन डॉलर्स जमा है,पर उनके किसी काम के नहीं,वो दुनिया के किसी भी बड़े से बड़े होटल में लजीज भोजन खाने की सामर्थ्य रखती है,पर उन्हें खाने में कुछ गोलियां और खारा पानी वो भी डाक्टर की सलाह से, मिलता है, उनके पास बड़ी और महंगी कई गाड़ियाँ हैं, पर वो व्हीलचेयर से अस्पताल में अपने बेड तक लाई जाती है, ऐसे ही उन्होंने दुनिया भर की विलासिता और सुख सुविधाओं की बात की है, जिसकी सभी चाहना करते हैं, उनके पास वो सब है, पर उन्होंने लिखा मुझे वो सब खुशी नहीं देते, उन्हें केवल जब कोई मुस्करा कर मिलता है तो उनके चेहरे पर बरबस हल्की सी मुस्कुराहट आ जाती है और वही उनके लिए खुशी के पल होते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि दुनिया के जड़ पदार्थ और धन दौलत हमें आराम और सुविधा तो दे सकते हैं पर खुशी नहीं दे सकते, वो तो एक अंदरूनी चीज़ है, जिसे आपस में अच्छे, मधुर संबंध बनाकर, सकारात्मक ऊर्जा के लेन-देन से ही प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन इन सहज संबंधों को भी जटिल बना, उसमें आवेश, क्रोध, चिंता,लोभ,मोह, घृणा, ईर्ष्या और द्वेष की गांठें लगा, जंजीर की तरह बना लेते हैं, उनमें बंध जाते हैं,जब दम घुटने लगता है,तो तूं तड़ाक कर हिंसा पर उतर आते हैं।जो संबंध हमें सशक्त बनाते, जिनसे सुख, शांति और शक्ति मिलनी चाहिए, उन्हें बोझ बना लेते हैं,वही संबंध फिर कलह क्लेश और दुःख के निमित्त बन जाते हैं और यहां तक की शारीरिक बीमारी का भी कारण बनते हैं। क्योंकि रिश्ते और संबंध भावनात्मक स्तर पर होते हैं, उनमें एक प्रकार की स्वचालिता और स्वफुरणता होती है,यह इतनी सूक्ष्म होती है कि कब इसमें नकारात्मकता घुस जाती है,पता ही नहीं चलता। जैसे कि गुस्से में आकर,तेज आवाज में एक दूसरे से बोलना, भला-बुरा कहना आदि। एक बार एक पिता अपने पुत्र को जो स्वभाव से बहुत गुस्सैल था, अर्थात छोटी छोटी बात पर अपना आपा खो देता था, उसे समझाया कि गुस्सा नहीं करना चाहिए, गुस्से से अपना भी मन खराब होता है और दूसरे भी दुःखी हो जाते हैं। उसकी इस आदत को छुड़ाने के लिए वो एक प्रयोग करते हैं। उसे कहा जाता है कि जब उसे गुस्सा आये तो अपने बोर्ड में एक कील ठोक दे। शुरू में तो एक ही दिन में आठ दस बार उसकी कीलें ठोंकी जाने लगी। धीरे धीरे उसने अपने क्रोध पर काबू करना सीख लिया। उसके पिता ने उसे शाबाशी देते हुए कहा कि जब जब वो गुस्सा नहीं करता तो वो एक एक कील निकाल सकता है, ऐसे करते करते एक दिन बोर्ड की सारी कीलें जो ठोंकी गई थी, निकाल लेता है। उसके पिता बहुत खुश होते हैं और उसे क्रोध पर काबू पा लेने पर बधाई देते हैं, पर वो अपने पिता से पूछता है कि कीलें तो सारी बाहर निकल आयी है, पर उनके निशान जिससे सारा बोर्ड ख़राब हो गया था, कैसे ठीक होंगे। तो उसके पिता कहते हैं कि बेटा ये निशान तो कभी नहीं मिटेगे, इन्हें तो केवल समय ही भर सकता है , अर्थात गुस्से में,आवेश में , चाहते हुए या नहीं चाहते हुए भी जो संबंधों में हम नकारात्मक ऊर्जा का निवेश कर देते हैं,वो संबंधों में कड़वाहट के रूप में उभर आती है, उन्हें आगे से सकारात्मक ऊर्जा अर्थात प्रेम प्यार से ठीक तो किया जा सकता है,पर उनके धब्बे जो अंतःकरण में दाग के रूप में जम जाते हैं। अतः आपसी व्यवहार में बड़ी सूझबूझ तथा सजगता बरतनी चाहिए।रहीम दास जी ने ठीक ही कहा है रहिमन धागा प्रेम का,मत तोड़ो चटकाए,टूटे से फिर ना
मिले,मिले गांठ पड़ जाएं।
जिस तरह से धन, पैसा, जेवरात हम संभाल कर रखते हैं, क्योंकि उनका मूल्य हमें पता है, इसी प्रकार यदि हमारा मन यह स्वीकार लें कि ये संबंध भी अमूल्य है, ऐसा नहीं है कि उनकी कोई कीमत नहीं है, अपितु अनमोल है अर्थात उन्हें मापा तोला और गिना नहीं जा सकता। अगर यह धारणा पक्की हो जाए कि हम कभी गुस्सा, घृणा, ईर्ष्या द्वेष आदि से इन्हें खराब नहीं करेंगे, सावधानी बरतेंगे, जैसे एक क्रिस्टल के बर्तन को हम सहेज कर संभाल कर जतन से उठाते और रखते हैं, ऐसे ही एक दूसरे से प्रेम प्यार और मधुर व्यवहार से पेश आएं तो जीवन सरस,सुखद और आनन्दमय बना सकते हैं। जैसे जीवन के अन्य सभी पहलुओं में हम सजगता और ध्यानपूर्वक ढंग से पेश आते हैं, उसी प्रकार जीवन में संबंधों को भी सहेजने और संभालने की महती आवश्यकता है। नहीं तो यह छोटी सी जिंदगी की बगिया रिश्तों और संबंधों से महकने की बजाय उलझनों और दुखों की खरपतवार से सड़ने लगती है।