डॉ कमलेश कली
प्रतिज्ञा करना, संकल्प करना मानवीय स्वभाव हैं।जब भी जीवन में हम कुछ असमान्य परिस्थितियों में फंसते हैं तो प्रयत्नों के साथ साथ संकल्प सिद्धी के लिए अपने आप को कुछ बंधनों में भी बांध लेते हैं।कभी हम स्पष्ट रूप से जग जाहिर कर देते हैं और कुछ को हम गुप्त रख अपने में समेटे रहते हैं।राजा चंद्र गुप्त ने अपने गुरु चाणक्य से पूछा था कि संकल्प करने पर कार्य सिद्धि के लिए क्या करना चाहिए ?इस पर उन्होंने कहा कि जो मन में सोचा है,उस कार्य को वाणी से प्रकट न करें, मंत्र के समान उसकी रक्षा करें और गुप्त रूप से उस काम की सिद्धि में लग जाएं। अर्थात कोई भी प्रतिज्ञा जब तक पूरी नहीं हो, उसे लोगों से गुप्त रखना चाहिए। कुछ ऐसा ही पीएम नरेंद्र मोदी के दाढ़ी बढ़ाने के रहस्य के बारे में कहा और सुना जा रहा है। काफी लंबे समय से उन्होंने अपनी दाढ़ी नहीं बनवाई है और उसके बाल बढ़े हुए है ,ऐसा माना जा रहा है कि उन्होंने कोरोना महामारी से देश के लोगों को बचाने के लिए भगवान से मन्नत मांगी हुई है कि जल्दी इस महामारी से निजात मिले और जल्द से जल्द इसका टीका आ जाएं, तभी वह अपनी दाढ़ी बनवाएंगे।
पुराने जमाने में भी ऐसा होता था। महाभारत में द्रोपदी ने भी अपने केश खुले रखने की प्रतिज्ञा की थी कि वो तब तक अपने बाल नहीं बांधेंगी,जब तक दुशासन, जिसने उनके बालों को पकड़ कर, कौरवों के सभागार में घसीटा था, उसके लहु से वो धो नहीं लेंगी। कुछ इसी तरह की प्रतिज्ञा भीम ने भी की थी। इस संदर्भ में चाणक्य की प्रतिज्ञा भी प्रसिद्ध है, उन्होंने भी नंद सम्राट द्वारा अपमान किये जाने पर अपनी चोटी खोलकर प्रतिज्ञा की थी जब तक नंद वंश का समूल विनाश नहीं कर देंगे,तब तक अपनी चोटी नहीं बांधेंगे। एक बार बालों पर चर्चा में सहज प्रश्न पूछा गया कि शरीर पर अगर बाल हो तो वह अवांछनीय माने जाते हैं और उन्हें हटाने के भरसक प्रयास किये जाते हैं,वही सिर पर बाल कम होने लगे तो चिंता होने लगती है।उस चर्चा में एक जीव शास्त्री ने बताया कि सिर पर अर्थात क्राउन पर बाल जीव विकास के प्रतीक होने के कारण वांछनीय समझें जाते हैं जबकि बाकी शरीर पर बाल तो पशुओं के भी होते हैं, वहां से क्रमिक विकास होने पर शरीर से बाल धीरे धीरे खत्म होते गये इसलिए अवांछनीय माने जाते हैं और उन्हें हटाते हैं। अभी भी हिन्दुओं में परम्परा के तौर पर पुत्र पिता के अंतिम संस्कार के समय अपने सिर मुंडवा लेते हैं, इसके पीछे भी यही कारण माना जाता है कि अपनी निजी प्रिय वस्तु के त्याग के रूप में पुत्र अपने बाल अर्पित कर देता है। तिरुपति बालाजी मंदिर में भी भक्त जन अपनी मुराद पूरी होने पर अपने केशो को कटवाते हैं। मंदिर को इन बालों के निर्यात और बिक्री से करोड़ों रुपए की आमदनी होती है। इसी तरह सिख धर्म में तो पांच ककार यानी कड़ा,कंघा,केश,कटारी,कछहरा इनका पालन करना होता है पर सबसे ज्यादा अपने केशो की वो प्राणपन से रक्षा करते हैं।
लगता है,आम भारतीय जनों की तरह प्रधानमंत्री ने भी दाढ़ी नहीं बनवाने की प्रतिज्ञा कर रखी है,वो इस विषय पर शांत हैं,पूछे तो पूछे कौन? गृहस्थी तो वे है नहीं,कि पत्नी ही पूछ ले कि दाढ़ी क्यों नहीं कटवा रहे। लगता है वो चाणक्य के प्रसिद्ध नीति वाक्य का अनुसरण कर रहे हैं कि जब तक संकल्प सिद्धी नहीं हो, उसे सार्वजनिक रूप से घोषित नहीं करना चाहिए। इसलिए उनकी बड़ी हुई दाढ़ी के पीछे रहस्यमय आभामंडल बना हुआ है और सोशल मीडिया में भी कई प्रकार की अटकलबाजियां लगाई जा रही है।