कहते हैं कल्पनाशीलता किसी उम्र की मोहताज नहीं होती । अब जब बात आज के बच्चों की की जाए तो कभी-कभी हमें ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं कि बड़े बड़ों को भी दातों तले उंगली दबानी पड़ जाती है । ये कहानी है दिल्ली के एक पब्लिक स्कूल में पहली कक्षा में पढ़ रही इशिता रावत की जो अभी सिर्फ छह साल की ही है । पिछले सप्ताह स्कूल से लौटते ही उसने मम्मी से कहा “ मम्मी... कल मैडम ने मछली पर कोई कहानी सुनाने के लिए कहा है ? “ आम घरों की तरह मम्मी ने भी वही पुराना राग अलापते हुए कहा कि मछली जल की रानी है .. जीवन उसका पानी है वाली पोइमसुना देना लेकिन स्कूल की मैडम ने तो इशिता को कहानी सुनाने के लिए कहा था । अब ऐसे में बेचारी मम्मी गहरी सोच में पढ़ गई । तभी इशिता बोली “ मम्मी आप मत सोचो मैं कहानी अपने आप सुना दूंगी“ । “अरे कौन सी कहानी“ मम्मी ने हैरान होते हुए पूछा ? अब हैरान होना स्वाभाविक भी था क्योंकि अभी इशिता को तो पढ़ना, लिखना भी आता ही नहीं था । इस पर झट से इशिता बोली “ मम्मी, कहानी सुनाना मुश्किल थोड़ा ही है मैं स्कूल में जलपरी वाली कहानी सुना दूंगी । मम्मी इशिता की इस बात को सुनकर हैरान थी । फिर इशिता ने बोलना शुरू किया – एक समुंद्र में जलपरी रहती थी । एक बार उस जलपरी को आक्टोपस ने पकड़ लिया । जलपरी ने उससे छूटने की बहुत कोशिश की लेकिन उसकी सारी कोशिश बेकार हो गई । जब आक्टोपस ने जलपरी को पकड़ा तो एक छोटी सी मछली बड़े ध्यान से देख रही थी । वह भाग कर गई और अपने जैसी बहुत सारी मछलियों को एक साथ ले आई और फिर सबने मिलकर आक्टोपस की खूब पिटाई की और जलपरी को छुड़ा लिया । जलपरी ने खुश होकर सब मछलियों को थैंक्यू कहा और वो वहां से चली गई । बस मम्मी मैं यह कहानी सुना दूंगी । अब मजे की बात यह है दोस्तो कि अगले दिन स्कूल में मैडम ने किसी से कोई कहानी सुनी ही नहीं लेकिन इशिता अपने घर,स्कूल और गली में अपनी इस कहानी को बड़े अंदाज से आज भी सुनाती है और उसकी ये कहानी सुनने वाले उस नन्ही सी राइटर को दुलारना नहीं भूलते.
.सीपी बुद्धिराजा