हरियाणा के गृह विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. सुमिता मिश्रा ने कहा कि भारत के नए आपराधिक कानूनों के क्रियान्वयन में हरियाणा ने स्वयं को एक राष्ट्रीय अग्रणी राज्य के रूप में मजबूती से स्थापित किया है। राज्य ने सजा दर, फॉरेंसिक अनुपालन और जांच समय-सीमा में उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की है, साथ ही मोबाइल फॉरेंसिक यूनिट, डीएनए और साइबर फॉरेंसिक में बड़े निवेश, बड़े पैमाने पर पुलिस भर्ती और जेल अवसंरचना के विस्तार सहित एक महत्वाकांक्षी सुधार रोडमैप भी प्रस्तुत किया है।
हरियाणा में नए आपराधिक कानूनों के क्रियान्वयन पर अभियोजन विभाग द्वारा पंचकूला स्थित पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस में आयोजित कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में अभियोजन अधिकारियों को संबोधित करते हुए डॉ. सुमिता मिश्रा ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम का लागू होना आपराधिक न्याय प्रणाली में एक व्यापक परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है। अभियोजकों को “न्याय के शिल्पकार” बताते हुए उन्होंने कहा कि उनकी कानूनी कुशलता और अदालत में की गई पैरवी पुलिस जांच को पीड़ितों और समाज के लिए सार्थक न्याय में बदलने में केंद्रीय भूमिका निभाती है।
डॉ. मिश्रा ने बताया कि 1 जुलाई 2024 से 24 दिसंबर 2025 के बीच राज्य में 1,59,034 प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गईं, जिनमें से 1,37,141 मामलों में आरोप-पत्र या अंतिम रिपोर्ट दाखिल की गई, जो लगभग 87 प्रतिशत है। अनिवार्य 60-दिवसीय जांच समय-सीमा वाले मामलों में लगभग 70 प्रतिशत मामलों का निपटान निर्धारित अवधि के भीतर किया गया, जबकि 90-दिवसीय श्रेणी में अनुपालन लगभग 80 प्रतिशत रहा। कई जिलों में अनुपालन स्तर 85 प्रतिशत से अधिक रहा, जो सख्त पर्यवेक्षण, बेहतर अंतर-जिला समन्वय और अधिक प्रभावी निगरानी तंत्र को दर्शाता है।
फॉरेंसिक सुधारों को रेखांकित करते हुए डॉ. मिश्रा ने कहा कि वर्ष 2025 में अनिवार्य जांच की आवश्यकता वाले 97.2 प्रतिशत अपराध स्थलों पर फॉरेंसिक विशेषज्ञों ने दौरा किया। फॉरेंसिक निरीक्षण की आवश्यकता वाले सभी गंभीर अपराधों में हरियाणा ने शून्य लंबितता हासिल की है। यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत आने वाले मामलों में, राज्य ने 99 प्रतिशत डीएनए पॉजिटिविटी दर दर्ज की है, जो वैज्ञानिक साक्ष्य-आधारित जांच में एक राष्ट्रीय मानक स्थापित करती है।
सजा परिणामों पर जानकारी देते हुए डॉ. मिश्रा ने बताया कि नए कानूनी ढांचे के अंतर्गत सजा दर लगभग तीन गुना बढ़कर 72 प्रतिशत हो गई है, जबकि पूर्व प्रणाली में यह 24 प्रतिशत थी। केवल 17 महीनों में 81,000 से अधिक मामलों का निपटान किया गया, जो नए आपराधिक कानूनों में परिवर्तन की प्रभावशीलता को दर्शाता है।
उन्होंने आगे कहा कि प्रौद्योगिकी आधारित न्याय वितरण प्रणाली ने इन सुधारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आधार-प्रमाणित कार्यप्रणालियों, ई-साइन उपकरणों, रियल-टाइम अपराध दस्तावेजीकरण, वाहन चोरी मामलों में स्वचालित प्राथमिकी पंजीकरण और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के बड़े पैमाने पर उपयोग से यह संभव हुआ है। वर्तमान में लगभग 78 प्रतिशत विचाराधीन बंदियों की अदालत में पेशी वर्चुअल माध्यम से हो रही है, जिसे राज्य भर में 2,100 से अधिक नामित इलेक्ट्रॉनिक गवाह परीक्षण सुविधाओं का समर्थन प्राप्त है।
आगामी रोडमैप का उल्लेख करते हुए डॉ. मिश्रा ने कहा कि गृह विभाग द्वारा 40 मोबाइल फॉरेंसिक वैन की तैनाती, जांच उपकरणों के आधुनिकीकरण के लिए 101 करोड़ रुपये का निवेश तथा इस वित्तीय वर्ष में डीएनए और साइबर फॉरेंसिक क्षमताओं को मजबूत करने के लिए अतिरिक्त 18 करोड़ रुपये के प्रावधान की योजना बनाई गई है। गुरुग्राम स्थित क्षेत्रीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला में एक नया डीएनए डिवीजन 1 जनवरी 2026 से कार्यशील हो जाएगा।
अवसंरचना को लेकर उन्होंने कहा कि चरखी दादरी, फतेहाबाद और पंचकूला में तीन नए जिला जेलों के निर्माण को 284 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से स्वीकृति दी गई है, जिससे इनमें लगभग 4,000 बंदियों की क्षमता बढ़ेगी, जबकि रेवाड़ी के फिदेरी गांव में 95 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित एक अत्याधुनिक जिला जेल परिसर का निर्माण पहले ही पूरा हो चुका है।
अपने संबोधन के दौरान डॉ. मिश्रा ने कहा कि आपराधिक न्याय के प्रति एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण अपनाया गया है। जो “जितना सुधार करता है उतना ही पुनर्स्थापित भी करता है”, हरियाणा भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 4(फ) के तहत हरियाणा सामुदायिक सेवा दिशा-निर्देश, 2025 को अधिसूचित करने वाला पहला राज्य बन गया है। इसका उद्देश्य छोटे अपराधों में पहली बार दोषी पाए गए अपराधियों के लिए कारावास के विकल्प के रूप में सामुदायिक सेवा को संस्थागत बनाना है। इसमें रक्तदान शिविर, पर्यावरण परियोजनाएं, स्वच्छ भारत मिशन गतिविधियां, एनसीसी/एनएसएस के लिए सहयोग, सार्वजनिक पार्कों का रखरखाव, ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में सहायता तथा विरासत स्थलों के संरक्षण सहित 17 विशिष्ट प्रकार की सामुदायिक सेवाएं शामिल हैं।
डॉ. मिश्रा ने कहा कि इन दिशा-निर्देशों में संवेदनशील वर्गों के लिए विशेष प्रावधान शामिल हैं—किशोरों को कौशल विकास और अनुशासन के लिए एनसीसी प्रशिक्षण, कौशल कार्यशालाओं और पर्यावरण परियोजनाओं जैसी पर्यवेक्षित गतिविधियां सौंपी जाती हैं, जबकि महिला अपराधियों को गरिमा और सार्थक योगदान सुनिश्चित करने के लिए नारी निकेतन, आंगनवाड़ी केंद्रों, प्रसूति वार्डों और बाल देखभाल संस्थानों जैसे सुरक्षित क्षेत्रों में सावधानीपूर्वक चयनित कार्य सौंपे जाते हैं।