कुरुक्षेत्र में चल रहे अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में सरस और शिल्प मेला लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। ऐसे में एक स्टॉल 235 नंबर जो ब्रह्मसरोवर के तट पर लगाया गया है, जिसमें राजस्थान के किशनगढ़ से आए हुए कलाकार दसवीं पास अरविंद रंग की कलम से पेंटिंग बनाकर लाए है। अहम पहलू यह है कि राजस्थान अपनी समृद्ध चित्रकला परंपरा के लिए जाना जाता है, जिसमें फड़ चित्रकला, जिसमें कपड़े पर देवी-देवताओं की कहानियां चित्रित की जाती हैं।
कलाकार अरविंद ने विशेष बातचीत करते हुए बताया कि पिछवाई चित्रकला, जो नाथद्वारा शैली की है और लघु चित्रकला, जो मुगल प्रभाव से विकसित हुई, जैसी शैलियां शामिल हैं। यह कपड़े के एक लंबे टुकड़े पर स्थानीय देवी-देवताओं और नायकों की कहानियां चित्रित करती हैं। पिछवाई चित्रकला, यह राजस्थान की एक बहुत प्रसिद्ध कला है, जिसे नाथद्वारा शैली के नाम से भी जाना जाता है। लघु चित्रकला यह 16वीं से 19वीं शताब्दी में राजस्थान में विकसित हुई एक शैली है, जिसमें धार्मिक और पौराणिक विषयों को दर्शाया जाता है।
दसवीं पास अरविंद अपने हाथों की रंग की कलम से पेंटिंग बनाकर लाए हैं, पर्यटक तस्वीरों में देख सकते हैं कि राजस्थान के रहने वाले अरविंद जिन्होंने पढ़ाई सिर्फ दसवीं तक की है, मगर अपनी रंगों की पेंटिंग को कागज में ऐसा भरते हैं कि लोग उनकी तमाम पेंटिंग की ओर आकर्षित हो जाते हैं। अपने पिता से पेंटिंग की कला सिखाने वाले अरविंद ने बताया कि चावल के पेपर से बनी हुई पेंटिंग किस तरह अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में लोगों का अपनी ओर आकर्षित कर रही है और तस्वीरों में दिख रहे हैं कि चावल के पेपर के ऊपर किशनगढ़ के राजा की पेंटिंग बनाई हुई है। इसी के अलावा ब्रिटिश काल के समय की पोस्टकार्ड जो आज भी पेंटिंग के जरिए दिखा रहे हैं कि किस तरह से पोस्टकार्ड पर पेंटिंग क्यों हुई है और अलग-अलग पेंटिंग में रंग किस तरह से अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में लोग अंतरराष्ट्रीय देखने के लिए आ रहे हैं।