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NAVBHARAT TIMES MAY11-‘ मेरे पास है...अरविंद केजरीवाल, मां : गीता, उम्र : करीब 68 साल राहुल गांधी, मां : सोनिया गांधी, उम्र : 67 साल नरेंद्र मोदी, मां : हीरा बा, उम्र : करीब 90 साल

May 11, 2014 07:26 AM

 


मेरे पास
है...

मां

 

अरविंद केजरीवाल, मां : गीता, उम्र : करीब 68 साल
राहुल गांधी, मां : सोनिया गांधी, उम्र : 67 साल
नरेंद्र मोदी, मां : हीरा बा, उम्र : करीब 90 साल

2007 में अरविंद केजरीवाल के पिता को दिल का दौरा पड़ गया। उन्हें 40 दिन आईसीयू में रहना पड़ा। ऐसी हालात में लोग टूट जाते हैं लेकिन अरविंद ने ठान लिया कि वह पिता के साथ ही वापस घर लौटेंगे। 40 दिन वह घर नहीं गए और पिता के ठीक होने पर उनके साथ ही लौटे। गीता केजरीवाल हमेशा ग्लैमर से दूर रहती हैं। वह बताती हैं कि नियमित रूप से सत्संग में जाती हूं। वहां भी कम ही लोग जानते हैं कि मैं अरविंद केजरीवाल की मां हूं। हां, अगर किसी सामाजिक समारोह में सम्मान के साथ लोग मिलते हैं तो जरूर अच्छा लगता है।


जनवरी 2013 में जयपुर में कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा था। उसमें राहुल गांधी को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया। लेकिन जब यह जिम्मदारी उन्हें दी गई तो उसे लेकर सोनिया गांधी का जो रिएक्शन उन्होंने बताया वह दिल को छू लेने वाला था। राहुल ने कहा कि रात में मां मेरा पास आईं। वह रो रही थीं। उन्हें पता है कि सत्ता जहर है। बेशक वे एक-दूसरे के लिए बेहद फिक्रमंद रहते हैं। पिछले साल तबीयत खराब होने पर जब सोनिया को संसद से ही अस्पताल ले जाना पड़ा तो सबने देखा था कि राहुल किस तरह परेशान थे और मां को सहारा दे रहे थे।
बचपन में एक बार मोदी तालाब से मगरमच्छ का एक बच्चा पकड़ लाए थे। मां ने जब यह देखा तो मगरमच्छ के बच्चे को फौरन तालाब में छोड़ आने के लिए कहा, लेकिन मोदी तैयार नहीं हो रहे थे। फिर मां ने उन्हें समझाया कि जिस तरह तुम मेरे बच्चे हो और कोई दूसरा तुम्हें मुझसे दूर ले जाए तो मुझे कितनी तकलीफ होगी, उसी तरह इसकी मां भी इस वक्त परेशान होगी। मोदी मां की बात समझ गए और मगरमच्छ के बच्चे को फौरन तालाब में छोड़ आए। मोदी पर इस वाकये का काफी पॉजिटिव असर पड़ा।


कहां रहती हैं : 10 जनपथ में बेटे राहुल गांधी के साथ रहती हैं।

पर्सनल लाइफ : सोनिया गांधी चाहतीं तो भारत की प्रधानमंत्री बन सकती थीं, लेकिन अंतरात्मा की आवाज का हवाला देकर उन्होंने यह पद ठुकरा दिया। राजीव गांधी से शादी करने बाद सोनिया जब हिंदुस्तान आईं, तो नेहरु-गांधी परिवार कांग्रेस के लिए सब कुछ हुआ करते थे, लेकिन राजनीति की यह चमक-दमक सोनिया को कभी अपनी ओर खींच नहीं पाई। उन्होंने सारा ध्यान अपने परिवार और बच्चों पर लगाया। संजय गांधी की मौत के बाद जब राजीव राजनीति में सक्रिय हुए तब भी सोनिया की प्राथमिकता बच्चे और परिवार ही रहा, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। 1991 में राजीव की हत्या के बाद सारी निगाहें सोनिया पर जाकर टिक गईं, लेकिन तकरीबन छह साल बाद तक सोनिया ने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता नहीं ली। 1997 में वह पार्टी की मेंबर बनीं और राजनीति से जुड़ीं। कुछ ही दिनों बाद उन्हें पार्टी अध्यक्ष बना दिया गया और आज भी वह इसी हैसियत से काम कर रही हैं। उन्होंने कांग्रेस की कमान उस वक्त संभाली, जब पार्टी काफी खराब दौर से गुजर रही थी। सोनिया ने कांग्रेस को एकजुट रखने और आगे बढ़ाने के लिए काफी मेहनत की।

बेटे के करियर में योगदान : सोनिया ने राहुल को सक्रिय राजनीति से दूर ही रखा। 2004 में पार्टी के दबाव के बाद उनका दिल बदला और फिर राहुल के चुनाव लड़ने का ऐलान हुआ। राहुल के चुनाव लड़ने के लिए अमेठी की सीट चुनी गई। यह वही सीट थी, जहां से कभी राजीव गांधी चुनाव लड़ते थे और राजीव के बाद सोनिया भी वहां से लड़ी थीं। बेटे के लिए सोनिया ने यह सीट खाली कर दी और रायबरेली से लड़ने का फैसला किया, जहां से कभी फिरोज गांधी और इंदिरा लड़ा करती थीं। जानकारों के अनुसार, राहुल के पॉलिटिकल करियर को प्लान करने में सोनिया खासी दिलचस्पी लेती हैं।


कहां रहती हैं : माता-पिता हमेशा केजरीवाल के साथ रहते हैं, पहले भी और अब भी। जब केजरीवाल मुख्यमंत्री बनने के बाद नए निवास में शिफ्ट हुए, तब भी वे साथ गए।

पर्सनल लाइफ : अरविंद केजरीवाल की मां गीता की जिंदगी उतार-चढ़ाव से परे सामान्य ही रही। पति गोविंद चंद केजरीवाल इलेक्ट्रिक इंजीनियर थे। उनके और अपने तीन बच्चों के साथ गीता का ज्यादातर वक्त उत्तरी भारत के हिसार, सोनीपत और गाजियाबाद जैसे इलाकों में बीता। गीता का पूरा ध्यान अपने परिवार पर ही रहा इसीलिए न सिर्फ अरविंद बल्कि उनके बाकी दोनों बच्चे भी कामयाब हैं। बेटी रंजना हरिद्वार में डॉक्टर हैं और छोटा बेटा मनोज पुणे में सॉफ्टवेयर इंजीनियर।

बेटे के करियर में योगदान : गीता के मुताबिक, उन्होंने कभी भी अपने बेटे के फैसलों पर उंगली नहीं उठाई और उन्हें अपने फैसले लेने के लिए आजाद छोड़ दिया। अरविंद के पक्के इरादे और जिद बहुत पहले से दिखने लगे थे, जब उन्होंने 12वीं के बाद सिर्फ और सिर्फ आईआईटी का फॉर्म भरा। आईआरएस की नौकरी छोड़कर पूरी तरह समाज सेवा का जब केजरीवाल ने फैसला किया तो मां कुछ समय के लिए डर गई थीं। फिर बेटे की जिद के सामने झुक गईं। अरविंद की काबिलियत पर मां को भरोसा था। वह मानती हैं कि अरविंद की इच्छाशक्ति बहुत मजबूत है। वह बेटे के मजबूत इरादों पर गर्व महसूस करती हैं। अरविंद मानते हैं कि मां की सीख उनके बड़े काम आई। मां के बताए रास्ते पर चलकर ही वह कामयाबी तक पहुंचे।

अरविंद केजरीवाल का अनशन जब 13 दिनों तक हो गया तो भी मां ने अरविंद से अनशन खत्म करने को नहीं कहा। बस कहा - भगवान उसे

शक्ति दें। जनता समर्थन दे और कामयाब करे। इसी तरह केजरीवाल ने जब मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया तो मां गीता ने अफसोस नहीं जताया, नही फैसले का विरोध किया बल्कि कहा कि उसे और बड़े काम करने हैं।
कहां रहती हैं : आजकल अपने छोटे बेटे पंकज के साथ गांधीनगर के सेक्टर 22 स्थित दो कमरों के सरकारी मकान में रहती हैं।

पर्सनल लाइफ : हीरा बा कुछ दिनों पहले तक गुजरात के वडनगर में उसी मकान में रहती थीं, जहां मोदी पैदा हुए थे और उनका बचपन बीता था। बाद में वह अपने छोटे बेटे के पास चली आईं। शुरुआती दिनों में माली हालत ऐसी नहीं थी कि घर ठीक से चल पाए। लिहाजा उन्होंने लोगों के घरों में बर्तन तक मांजें। हैरानी नहीं कि नरेंद्र मोदी को चाय की दुकान पर काम करना पड़ा। मोदी मुख्यमंत्री हैं, लेकिन उनकी मां आज भी दो कमरों के मकान में रहती हैं और उनका रहन-सहन लोअर मिडल क्लास जैसा ही है। हीरा बा को यकीन है कि मोदी इस बार देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। गांधीनगर में वोटिंग के दिन हीरा बा ऑटोरिक्शा में बैठकर वोट डालने गईं। यह अलग बात है कि गांधीनगर से खुद मोदी नहीं, बल्कि लालकृष्ण आडवाणी चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन बेटे की खातिर बूढ़ी मां ने न खराब तबीयत की परवाह की और न ही तपते आसमान की।

बेटे के करियर में योगदान : मोदी जब छोटे थे तो एक ज्योतिषी ने मां तो बताया कि घर-परिवार में नरेंद्र का मन कम ही लगेगा, , इसलिए इसका ध्यान रखना। मां को बेटे की फिक्र हुई और उन्होंने मोदी की शादी करा दी, लेकिन शादी का बंधन मोदी को अपने लक्ष्य से दूर नहीं कर पाया। वह घर छोड़कर चले गए। कहते हैं कि दो साल तक उनका कोई अता-पता नहीं था। मोदी जब लौट कर आए तो मां ने दोबारा उन्हें परिवार के बंधनों में बांधने की कोशिश नहीं की। उन्होंने मोदी को वह सब करने की आजादी दी, जो वह करना चाहते थे। आज भी मोदी परिवार की जिम्मेदारियों से लगभग मुक्त ही हैं। उनके मुख्यमंत्री निवास पर घर-परिवार के लोग कम ही जाते हैं। हां दीवाली, अपने जन्मदिन और किसी बड़ी राजनीतिक जीत के बाद मोदी आशीर्वाद लेने के लिए अपनी मां के पास जरूर जाते हैं।
खास वाकया
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चुनाव के मौसम में कुछ चेहरे हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं। इन चेहरों को खास बनाने और इस मुकाम तक पहुंचाने में इनकी मांओं का खास योगदान रहा है। मदर्स डे के मौके

पर जानते हैं, इस लोकसभा चुनाव के तीन टॉप चेहरों की मांओं के कुछ जाने-अनजाने पहलुओं के बारे में। प्रियंका सिंह की खास रिपोर्ट :

 

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