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कलम कुछ कहती है.. हमने आपातकाल से क्या सबक सीखा? लेख: मनोहरलाल

June 27, 2025 12:59 PM
आपातकाल ऐसा समय था जब नागरिक अधिकार समाप्त कर दिए गए, प्रेस की स्वतंत्रता छीन ली गई और हजारों लोगों को बिना किसी वजह के जेलों में डाल दिया गया। 25 जून 1975 को लगा आपातकाल भारत के लोकतंत्र का काला अध्याय है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस दौरान एक लाख 40 हजार से ज्यादा लोगों को जेल में बन्द करवा दिया था। जिनमें विपक्षी नेता, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ताओं की संख्या काफी ज्यादा थी। आपातकाल बुरा दौर था, लेकिन यह एक अवसर भी रहा।इस दौरान देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए लोगों में गुस्से के साथ जोश भी भर गया था, जिसका सिलसिला आज भी जारी है। आपातकाल खत्म होने के बाद देश की जनता ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर देश की बागडोर जनता पार्टी के हाथों दी। इससे कांग्रेस का राज खत्म हुआ और इंदिरा गांधी की तानाशाही का भी अंत हुआ। भारतीय जनता पार्टी को उस वक्त बेशक दो ही सीट मिली, लेकिन आपातकाल में भरे जोश का ही फल है कि आज देश में लगाकर तीन बार चुनाव जीतकर भाजपा सत्ता में बनी हुई है। लोगों को उस वक्त देश की खातिर लड़ने का जज्बा मिला था। देश एक जेल बनकर रह गई थी कि आपातकाल को लोग कभी भुला नही पाएंगे। उस वक्त के लोगों को याद है कि उन्होंने कैसे यातनाएं सही। आजादी के रूप में जीने का अधिकार छीन लिया था। मीडिया पर पाबंदी लगा दी थी। संविधान में अनेक संशोधन करके सख्त कानून बनाए। विरोध प्रदर्शन करने वालों को देशद्रोही करार देकर जेल में डाल दिया जाता था। संपादक संपादकीय नहीं लिख पाते थे। न्यायपालिका में भी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने काफी दखल दिया। संघ के कार्यकर्ताओं ने भूमिगत होकर देश के लिए काम किया, जिनमे वह (मनोहर लाल) भी शामिल रहे। अखबार प्रकाशित करने से लेकर लोगों तक पहुंचाने का काम काफी गोपनीय ढंग से किया जाता था। नसबंदी के रूप में इंदिरा गांधी ने लोगों पर खूब जुल्म किए। चुनाव में धांधली करके इंदिरा गांधी ने चुनाव को जीता था, लेकिन चुनाव हारने वाले नया राज नारायण ने चुनाव के नतीजों को कोर्ट में चुनोती दी और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चुनाव को रद्द करके इंदिरा पर छह वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ने की पाबंदी लगा दी थी, उसके बाद इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया। उच्च न्यायालय के इस निर्णय ने श्रीमती इंदिरा गांधी के पद को खतरे में डाल दिया था। अपनी सत्ता को बचाने की लाचारी और राजनीतिक वर्चस्व की भूख ने लोकतांत्रिक मूल्यों को ध्वस्त करते हुए श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया। आपातकाल का यह निर्णय किसी राष्ट्रीय संकट के कारण नहीं बल्कि श्रीमती गांधी की सत्ता लोलुपता से प्रेरित था। संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आंतरिक अशांति का बहाना बनाकर उन्होंने देश को आपातकाल के अंधकार में धकेल दिया। संवैधानिक प्रावधानों के तहत देश में आपातकाल मंत्रिमंडल की अनुशंसा पर राष्ट्रपति द्वारा लागू किया जाना चाहिए, परंतु श्रीमती गांधी ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने 26 जून 1975 को सुबह 6:00 केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर मंत्रियों को बताया कि मध्य रात्रि के बाद से देश में आपातकाल लगा दिया गया है। कुल मिलाकर देश में आपातकाल लागू करने के बाद और देश को यह सूचना देने से पहले श्रीमती गांधी ने मंत्रिमंडल की महज औपचारिक सहमति प्राप्त की, जो उनकी तानाशाही को दर्शाता है। आपातकाल लागू करते ही इंदिरा गांधी की तानाशाही शुरू हो गई। उन्होंने देश में नागरिक स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया। श्रीमती गांधी द्वारा राष्ट्रवादी विचारधारा को कुचलने का कार्य किया। लोकतंत्र को बचाने के लिये प्रतिरोध करने वालों के विरूद्ध आपराधिक प्रकरण दर्ज किये गये। जनसंघ और अन्य विपक्षी दलों से जुड़े नेताओं को गिरफ्तार कर ‘मीसा’ अर्थात आंतरिक सुरक्षा कानून के तहत जेल में डाल दिया गया जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेई और लालकृष्ण आडवाणी जैसे अनेक वरिष्ठ नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया। एक अनुमान के मुताबिक बिना सुनवाई के लगभग 01 लाख 40 हजार से अधिक  लोगों को जेल में बंद कर दिया गया। लोकतंत्र की सबसे जरूरी विशेषता ‘वैकल्पिक विचार’ को श्रीमती इंदिरा गांधी ने राजद्रोह में बदल दिया। लेकिन वो भूल गई की भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और संविधान लोकतंत्र का रक्षक, क्योंकि संविधान लोकतांत्रिक मूल्यों, मौलिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता की आधारशिला है।
 
 उस समय अटल जी ने कहा था सूरज उगेगा, अंधेरा छंटेगा ओर कमल खिलेगा
 उस कठिन समय में स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने कहा था – ‘सूरज उगेगा, अंधेरा छंटेगा और कमल खिलेगा।’ यह कथन उस समय करोड़ों देशवासियों के लिए आशा और संकल्प का स्रोत बना।”आपातकाल ने भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को चुनौती दी, लेकिन जनता के संघर्ष और जागरूकता ने देश को फिर से लोकतंत्र की राह पर लौटाया। आपातकाल से उपजे जन आंदोलन ने न केवल देश की चेतना को जगाया, बल्कि यह साबित कर दिया कि भारत की आत्मा लोकतंत्र में ही बसती है।आज भारत वैश्विक मंच पर नई पहचान बना रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में “आज भारत आत्मनिर्भर बन रहा है और दुनिया की बड़ी चुनौतियों का समाधान देने वाला देश बन चुका है। वैश्विक समुदाय मान चुका है कि भारत में हर जटिल समस्या का समाधान मौजूद है। हमारा लक्ष्य एक ऐसे भारत का निर्माण करना है जो न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखे, बल्कि उस पर गर्व भी करे।”
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