Saturday, July 27, 2024
Follow us on
BREAKING NEWS
कांग्रेस दलितों के लिए कैंसर जैसी बीमारी, भाजपा शासन में सुरक्षा : सुदेश कटारिया हरियाणा सरकार ने 15 आईएएस और 2 एचसीएस अधिकारियों का किया तबादलाएमडब्ल्यूबी का मुफ्त पॉलिसी वितरण समारोह पंचकूला में 31 जुलाई कोहरियाणा सरकार कच्चे कर्मचारियों को पक्का कर बड़ी राहत दे सकती है सरकार इस मसले पर गंभीरता से विचार कर रही है इसके लिए सरकार ने 9 सदस्य की कमेटी का गठन किया है,जिसमें आठ वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को शामिल किया गया हैकेंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने की उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से पार्लियामेंट में मुलाकातअग्निवीरों के कल्याण की योजना पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने की हरियाणा की प्रशंसाचंडीगढ़ मुख्यमंत्री नायब सिंह का बड़ा फैसला,सरकारी अस्पताल में लैब टैस्ट या अल्ट्रासाउंड ना होने पर अब मरीज निजी लैब में करा पाएंगे टैस्ट सरकार द्वारा सिविल अस्पताल को दिए जाने वाले फंड से होगा उन टैस्ट का भुगतान,सभी सीएमओ को जारी किए गए निर्देश सभी सीएमओ को निजी लैब एमपैनल करने के दिए गए निर्देश,सरकारी डाक्टर/सीएमओ के Prescription पर Empanelled लैब पर करा सकेंगे इलाजपूर्व गृह मंत्री अनिल विज ने पाकिस्तान को सन 1947-48, 1965, 1971 और 1999 में हुए युद्धों की हार की याद दिलाई
Haryana

वीरता और कर्तव्यपरायणता की मिसाल झलकारी बाई

November 18, 2023 04:06 PM

मुकेश वशिष्ठ

 

भारत का गौरवशाली इतिहास, इस लिहाज से विलक्षण माना जाएगा कि यहां समाज के हर तबके ने अपने कृतित्व और जागरूकता के सुलेख लिखने के लिए स्वाधीनता प्राप्ति का इंतजार नहीं किया। दिलचस्प है कि इस दौरान कीर्ति, यश और नायकत्व के तारीखी पन्ने महिलाओं के हिस्से भी खूब आए। लेकिन, दुर्भाग्यवश गौरवशाली इतिहास के इन पन्नों में कई बड़े किरदार खोए गए। सौभाग्य से ऐसे महानायकों को मुख्यमंत्री मनोहर लाल नए सिरे से जिक्र व तर्क के साथ देश व प्रदेश में सामाजिक-सांस्कृतिक विमर्श के साथ उभार रहे हैं। हिंदुस्तानी तारीख का एक ऐसा ही सुनहरा नाम है, झलकारी बाई।

            मेघवंशी समाज में झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर 1830 को झांसी के पास भोजला गाँव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था। झलकारी बाई के पिता का नाम सदोवर सिंह (उर्फ मूलचंद कोली) और माता जमुनाबाई (उर्फ धनिया) थी। जब झलकारी बाई बहुत छोटी थीं, तब उनकी माँ की मृत्यु के हो गई थी। उनके पिता ने उन्हें एक लड़के की तरह पाला था। उन्हें घुड़सवारी और हथियारों का इस्तेमाल करने में प्रशिक्षित किया गया था। हाँलाकि सामाजिक परिस्थितियों के कारण उन्हें औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने का अवसर तो नहीं मिला, किन्तु वीरता और साहस का गुण उनमें बालपन से ही दिखाई देते थे। झलकारी बचपन से ही बहुत साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ लड़की थी। किशोरावस्था में झलकारी की शादी झांसी के पूरनलाल से हुई जो रानी लक्ष्मीबाई की सेना में तोपची थे। झलकारी बाई शुरूआत में घरेलू महिला थी। पर बाद में धीरे–धीरे उन्होंने अपने पति से सारी सैन्य विद्याएं सीख ली और एक कुशल सैनिक बन गईं।

       कहा जाता है कि एकबार जंगल में झलकारी की मुठभेड़ एक तेंदुए के साथ हो गई थी और झलकारी ने अपनी कुल्हाड़ी से उस जानवर को मार डाला था। एक अन्य अवसर पर जब डकैतों के एक गिरोह ने गाँव के एक व्यवसायी पर हमला किया तब झलकारी ने अपनी बहादुरी से उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया था।

       माना जाता है कि पहली बार झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और झलकारी बाई का आमना-सामना एक पूजा समारोह के दौरान हुआ। झांसी की परंपरा के अनुसार गौरी पूजा के मौके पर राज्य की महिलाएं किले में रानी का सम्मान करने गईं। इनमें झलकारी भी शामिल थीं। जब लक्ष्मीबाई ने झलकारी को देखा तो वो हैरान रह गईं। क्योंकि झलकारी बिल्कुल लक्ष्मीबाई जैसी दिखती थी। जब रानी लक्ष्मीबाई ने झलकारी की बहादुरी के किस्से सुने तो उन्होंने झलकारी को सेना में शामिल कर लिया। झांसी की सेना में शामिल होने के बाद झलकारी ने बंदूक चलाना, तोप चलाना और तलवारबाजी का प्रशिक्षण लिया। जल्द ही, झलकारी बाई को रानी लक्ष्मीबाई की दुर्गा दल नामक महिला सेना में सेनापति का पद मिल गया, और वे अक्सर रानी की तरफ से महत्वपूर्ण निर्णय लिया करती थीं। ये वो समय था जब झाँसी की रानी अपनी सेना को ब्रिटिश शासन से लोहा लेने के लिए तैयार कर रही थी। राजा गंगाधर राव के निधन के बाद, अंग्रेजों को उनका उत्तराधिकारी स्वीकार्य नहीं था, परंतु अंग्रेजों के विरोध के बावजूद, रानी लक्ष्मीबाई ने शासन की बागडोर संभालने का फैसला किया।

23 मार्च,1858 को डलहौज़ी की हड़प नीति के तहत झाँसी राज्य को हड़पने के लिए जनरल ह्युरोज ने अपनी विशाल सेना के साथ झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने वीरतापूर्वक अपने सैन्य दल से उस विशाल सेना का सामना किया। रानी कालपी में पेशवा द्वारा सहायता की प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन उन्हें कोई सहायता नही मिल सकी, क्योंकि तात्याँ टोपे जनरल ह्युरोज से पराजित हो चुके थे। जल्द ही अंग्रेजी फ़ौज झाँसी में घुस गयी और रानी अपने लोगों को बचाने के लिए जी-जान से लड़ने लगी। लेकिन, सेनानायक दूल्हेराव के धोखे के कारण जब झाँसी किले का पतन निश्चित हो गया। ऐसे में झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई के प्राण बचाने के लिए खुद को रानी बताते हुए लड़ने का निर्णय लिया। उन्होंने पूरी अंग्रेजी सेना को भ्रम में रखा, ताकि रानी लक्ष्मीबाई सुरक्षित बाहर निकल सकें। किले की रक्षा करते हुए झलकारी का पति पूरण भी शहीद हो गया। पति की लाश देखकर भी बिना शोक मनाने की बजाय बिना विचलित हुए उन्होंने सेना का नेतृत्व किया

इस घटना का जिक्र मशहूर साहित्यकार बीएल वर्मा के ऐतिहासिक उपन्यास 'झांसी की रानी-लक्ष्मीबाई' में बड़े मार्मिक रूप से किया है। उन्होंने लिखा है, "झलकारी ने अपना श्रृंगार किया। बढ़िया से बढ़िया कपड़े पहने, ठीक उसी तरह जैसे लक्ष्मीबाई पहनती थीं। गले के लिए हार न था, परंतु कांच के गुरियों का कण्ठ था। उसको गले में डाल दिया। प्रात:काल के पहले ही हाथ मुंह धोकर तैयार हो गईं। पौ फटते ही घोड़े पर बैठीं और ऐठ के साथ अंग्रेजी छावनी की ओर चल दिया। साथ में कोई हथियार न लिया। चोली में केवल एक छुरी रख ली। थोड़ी ही दूर पर गोरों का पहरा मिला। टोकी गई। झलकारी को अपने भीतर भाषा और शब्दों की कमी पहले-पहल जान पड़ी। परंतु वह जानती थी कि गोरों के साथ चाहे जैसा भी बोलने में कोई हानि नहीं होगी। झलकारी ने टोकने के उत्तर में कहा, 'हम तुम्हारे जडैल के पास जाउता है।' यदि कोई हिन्दुस्तानी इस भाषा को सुनता तो उसकी हंसी बिना आये न रहती। एक गोरा हिन्दी के कुछ शब्द जानता था। बोला, कौन ?

रानी -झांसी की रानी, लक्ष्मीबाई, झलकारी ने बड़ी हेकड़ी के साथ जवाब दिया। गोरों ने उसको घेर लिया। उन लोगों ने आपस में तुरंत सलाह की, 'जनरल ह्युरोज के पास अविलम्ब ले चलना चाहिए।' उसको घेरकर गोरे अपनी छावनी की ओर बढ़े। शहर भर के गोरों में हल्ला फैल गया कि झांसी की रानी पकड़ ली गई. गोरे सिपाही खुशी में पागल हो गये। उनसे बढ़कर पागल झलकारी थी। उसको विश्वास था कि मेरी जांच-पड़ताल और हत्या में जब तक अंग्रेज उलझेंगे, तब तक रानी को इतना समय मिल जावेगा कि काफी दूर निकल जावेगी और बच जावेगी।" झलकारी रोज के समीप पहुंचाई गई। वह घोड़े से नहीं उतरी। रानियों की सी शान, वैसा ही अभिमान, वही हेकड़ी- रोज भी कुछ देर के लिए धोखे में आ गया।" बीएल वर्मा ने आगे लिखा है कि दूल्हेराव ने जनरल ह्युरोज को बता दिया कि ये असली रानी नहीं है। इसके बाद रोज ने पूछा कि तुम्हें गोली मार देनी चाहिए। इस पर झलकारी ने कहा कि मार दो, इतने सैनिकों की तरह मैं भी मर जाऊंगी। झलकारी के इस रूप को अंग्रेज सैनिक स्टुअर्ट बोला कि ये महिला पागल है। झलकारी की नेतृत्व क्षमता और साहस देखकर ह्यूगरोज़ भी दंग रह गया और उसने बड़े सम्मान से कहा, "अगर भारत की एक फीसद महिलाएं भी उसके जैसी हो जाएं तो ब्रिटिश सरकारी को जल्द ही भारत छोड़ना होगा।"

         कुछ लोगों का कहना हैं कि युद्ध के बाद उन्हें छोड़ दिया गया था और फिर उनकी मृत्यु 1890 में हुई। इसके विपरीत कुछ इतिहासकार मानते हैं कि झलकारी बाई को युद्ध के दौरान ‎4 अप्रैल 1858 को वीरगति प्राप्त हुई। उनकी मृत्यु के बाद अंग्रेजों को पता चला कि जिस वीरांगना ने उन्हें कई दिनों तक युद्ध में घेरकर रखा था, वह रानी लक्ष्मी बाई नहीं बल्कि उनकी हमशक्ल झलकारी बाई थी।

इसे विडंबना ही कहेंगे कि मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की भेंट चढ़ा देने वाली भारत की इस बेटी झलकारी बाई को इतिहास में बहुत अधिक स्थान नहीं मिला। पहली बार 22 जुलाई 2001 में, प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारत सरकार ने महान वीरांगना के सम्मान में एक डाक टिकट और टेलीग्राम स्टांप जारी किया। इसमें झलकारीबाई, रानी लक्ष्मीबाई की तरह ही हाथ में तलवार लिए घोड़े पर सवार दिखती हैं। आज भारतीय पुरातात्विक सर्वे द्वारा निर्मित झांसी के किले में स्थापित पंच महल म्यूजियम में झलकारीबाई का भी उल्लेख किया है। साथ ही आगरा व अजमेर में उनकी विशाल प्रतिमा लगाई गई है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की भांति झलकारीबाई का भी साहित्य, उपन्यासों और कविताओं में जिक्र किया गया है। 1951 में बीएल वर्मा द्वारा रचित उपन्यास ‘झांसी की रानी’ में झलकारी बाई को विशेष स्थान दिया गया है। रामचंद्र हेरन के उपन्यास माटी में झलकारीबाई को उदात्त और वीर शहीद कहा गया है। भवानी शंकर विशारद ने 1964 में झलकारीबाई का पहला आत्मचरित्र लिखा था। ‘खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी’ की तर्ज पर राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्ता ने झलकारी बाई के बारे में भी लिखा है-

 

जा कर रण में ललकारी थी,

वह तो झांसी की झलकारी थी।

गोरों से लड़ना सिखा गई,

है इतिहास में झलक रही,

वह भारत की ही नारी थी।

                    

          इसी श्रृखंला को आगे बढ़ाते हुए मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल के नेतृत्व में हरियाणा सरकार ने संत महापुरुष सम्मान एवं विचार प्रचार प्रसार योजना के तहत वीर-वीरागंनाओं को सम्मान करने का बीड़ा उठाया है। 20 नवंबर पलवल में आयोजित राज्यस्तरीय झलकारी बाई जयंती समारोह पुन: स्मरण कराएगी कि कैसे रानी झलकारीबाई ने अपने आराम क्षेत्र से बाहर निकलकर कठिन रास्ता सीखा? मुख्यमंत्री मनोहर लाल भी अक्सर कहते हैं कि जब तक आने वाली पीढ़ियों को गौरवशाली प्रतीकों और उनकी सामाजिक उत्पत्ति के बारे में जागरूक नहीं किया जाएगा, हम एक समृद्ध विविध इतिहास वाले राष्ट्र के रूप में सामूहिक रूप से प्रगति नहीं करेंगे। उम्र के मात्र 27-28 बसंत देखने के बावजूद झलकारी का शौर्य भारतीय महिलाओं के हिस्से आया ऐसा गौरव है, जिसकी चमक आज भी बरकरार है। भारत की सम्पूर्ण आजादी के सपने को पूरा करने के लिए अपना सर्वोच्च न्यौछावर करने वाली वीरांगना झलकारी बाई का देश सदैव ऋणी रहेगा।

 

 लेखक: मुख्यमंत्री के मीडिया समन्वयक हैं।

Have something to say? Post your comment
More Haryana News
कांग्रेस दलितों के लिए कैंसर जैसी बीमारी, भाजपा शासन में सुरक्षा : सुदेश कटारिया
हरियाणा सरकार ने 15 आईएएस और 2 एचसीएस अधिकारियों का किया तबादला
एमडब्ल्यूबी का मुफ्त पॉलिसी वितरण समारोह पंचकूला में 31 जुलाई को
हरियाणा सरकार कच्चे कर्मचारियों को पक्का कर बड़ी राहत दे सकती है सरकार इस मसले पर गंभीरता से विचार कर रही है इसके लिए सरकार ने 9 सदस्य की कमेटी का गठन किया है,जिसमें आठ वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को शामिल किया गया है
केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने की उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से पार्लियामेंट में मुलाकात
अग्निवीरों के कल्याण की योजना पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने की हरियाणा की प्रशंसा
चंडीगढ़ मुख्यमंत्री नायब सिंह का बड़ा फैसला,सरकारी अस्पताल में लैब टैस्ट या अल्ट्रासाउंड ना होने पर अब मरीज निजी लैब में करा पाएंगे टैस्ट सरकार द्वारा सिविल अस्पताल को दिए जाने वाले फंड से होगा उन टैस्ट का भुगतान,सभी सीएमओ को जारी किए गए निर्देश सभी सीएमओ को निजी लैब एमपैनल करने के दिए गए निर्देश,सरकारी डाक्टर/सीएमओ के Prescription पर Empanelled लैब पर करा सकेंगे इलाज
पूर्व गृह मंत्री अनिल विज ने पाकिस्तान को सन 1947-48, 1965, 1971 और 1999 में हुए युद्धों की हार की याद दिलाई
चंडीगढ़:हरियाणा कैबिनेट की होगी बैठक,5 अगस्त सोमवार को होगी कैबिनेट की बैठक,मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की अध्यक्षता में होगी कैबिनेट बैठक हरियाणा सरकार का बड़ा फैसला,स्वस्थ हरियाणा स्वस्थ भारत