चंडीगढ़। देश में अन्य क्षेत्रों की तर्ज पर कृषि के क्षेत्र में भी महिलाएं तेजी से आगे बढ़ती जा रही हैं। कृषि के सहायक धंधों में लगी महिलाओं को अगर सही दिशा में जागरूक किया जाए तो महिलाएं कृषि के क्षेत्र में भी अपना नाम कमा सकती हैं।
उक्त विचार भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की सहायक निदेशक (मानव संसाधन विका) डॉ.सीमा जग्गी ने ग्रेमैटर्स कम्यूनिकेशंस तथा डेवलपमेंट कम्यूनिकेशंस प्लेटफॉर्म फिजीहा के तत्वाधान में आयोजित वेबीनार को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
आगामी 9 से 12 अक्टूबर तक नई दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय लैंगिक अनुसंधान सम्मेलन होने जा रहा है। इसी सम्मेलन की ओर बढ़ते हुए हरियाणा व पंजाब पर आधारित ऑनलाइन मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसका शीर्षक था। ’अनुसंधान से असर तक:न्यायसंगत व लचीली कृषि-खाद्य प्रणालियों की ओर’। इस अवसर पर डॉ.जग्गी ने कहा कि अनुसंधान अच्छी नीतियों की रीढ़ होता है और आईसीएआर महत्वपूर्ण अनुसंधान के मामले में अग्रिम मोर्चे पर रहती है। आईसीएआर ने इस विषय के लिए एक खास महिला केन्द्रित ’सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर वूमन इन एग्रीकल्चर’ का निर्माण किया है।
मैरियन गेडबर्ग और डॉ.नवनीत आनंद के संचालन में हुए इस कार्यक्रम में अलायंस फॉर ए ग्रीन रिवोल्यूशन इन अफ्रीका (एजीआरए) की डॉ.रहमा ऐडम ने कहा कि महिलाओं की चुनौतियों के सफल समाधान के लिए बाजारों में महिलाओं के सीमित अवसरों, उनकी मांगों व जरूरतों पर शोध की आवश्यकता है। ऐसे साक्ष्य व सिफारिशें तैयार करनी होंगी जिनसे भारत जैसे देशों में सक्षमकारी नीतियों के बारे में सूचित किया जा सके। शोध की मदद से आकस्मिक मुद्दों की पहचान, आंकड़ों की कमी दूर करने, महिलाओं की चुनौतियों व अवसरों को चिन्हित करने हेतु वह साक्ष्य व मार्गदर्शन प्राप्त होते हैं जिनकी हमें जरूरत है।
इस अवसर पर बोलते हुए सीजीआईएएआर की अनुसंधान प्रमुख डॉ.रंजीता पुस्कुर ने कहा कि भारत में 1.35 करोड़ से 1.57 करोड़ के बीच उद्यम ऐसे हैं जिनका स्वामित्व महिलाओं के पास है। यह कुल उद्यमों का 20 प्रतिशत है। संख्या व गुणवत्ता को गति देकर तीन करोड़ से अधिक महिला स्वामित्व वाले उद्यम तैयार किए जा सकते हैं,जिनमें से 40 प्रतिशत महज स्व-रोजग़ार से बढक़र होंगे। इससे भारत में रोजगार की स्थिति में बड़ा बदलाव आएगा, लगभग 15 से 17 करोड़ नौकरियां पैदा होंगी।
उन्होंने कहा कि हरियाणा व पंजाब में महिलाओं के डेयरी उद्योग, कृषि के सहायक धंधे महिलाओं के लिए कारगर सिद्ध हो रहे हैं। युवा जेंडर व समावेशन की निदेशक सब्दियो दिदो बाशुना ने बताया कि बाजारों में अवसर पाने की इच्छुक महिलाओं के सामने पूंजी निवेश, वित्तीय योजना व नेटवर्क जैसी प्रतिस्पर्धी परिसम्पत्तियों तक सीमित पहुंच, उत्पादों व सेवाओं के लिए बाजार पहुंच का अभाव तथा जेंडर के आधार पर रुकावटी नियमों समेत इससे संबंधित अन्य बाधाएं हैं।