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Dharam Karam

आदतों को सुधारे व्यक्तित्व ही सुधर जायेगा !

December 01, 2020 06:14 AM

आदतों  को सुधारे  व्यक्तित्व ही सुधर जायेगा !

डॉ कमलेश कली 

बुरी आदतों में जो फंसता गया, वो जिल्लत की दलदल में धंसता गया, जो पत्थर न लग जाए दीवार में,वही ठोकरें खाए बाजार में ! आदतें व्यक्तितत्व का अति महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। सभ्य व्यक्ति की पहचान उसकी सभ्य और सुरुचि पूर्ण आदतों से होती है। आदतें बन जाती है या बनाई जाती है,यह एक यक्ष प्रश्न है। बुरी आदतों को तो अक्सर चक्रव्यूह की तरह बताया जाता है जिसमें फंसना तो आसान होता है,पर निकलना मासी का घर नहीं होता। आदतें कैसे बनती है, इनकी निर्माण प्रक्रिया को जानना जरूरी है। जैसा सोचते हैं, वैसा बोलने और फिर करने लगते हैं।जब बार बार करते हैं, तो वह कार्य अपने आप होने लगता है, उसके लिए बार बार बुद्धि नहीं लगानी पड़ती, इन्द्रियां बुद्धि अर्थात विवेक को बायपास कर आटोमोड पर चली जाती है।  मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि 21 दिन यानी तीन सप्ताह तक कोई व्यवहार निरंतर किया जाएं तो वह आदत का रुप ले लेता है। हमारी आदतें ही हमारे व्यवहार और स्वभाव को परिभाषित करती है। आदतों की हमारे जीवन पर गहरी पकड़ होती है। शायद इसीलिए ही कहते हैं कि आदतें तो सिर जाने के साथ ही पीछा छोड़ती है अर्थात जीवन पर्यन्त साथ रहती है, मरने के बाद ही उनसे पीछा छूटता है। एक बार एक रिटायर्ड फौजी सिर पर अंडों की टोकरी लिए जा रहा होता है, सामने चाय की दुकान पर दो नवयुवक खड़े होते हैं, फौजी को देख उन्हें मसखरी सूझती है। वो  फोजी को देख जोर से बोलते हैं - एटेंशन, सावधान !आगे मुड़, पीछे देख। बस फिर क्या, फौजी अपनी टोकरी से हाथ छोड़ सावधान की मुद्रा में खड़ा हो जाता है, उसकी टोकरी गिर जाती है और सारे अंडे  भी टूट जाते हैं। उसे बहुत गुस्सा आता है और उनसे पूछता है कि तुमने ऐसा क्यों बोला?इस पर युवक कहने लगा, क्या इस देश में  "सावधान ! आगे बढ़, पीछे देख" कहना  कोई अपराध है। ये बात तो खैर हंसी की हैं,पर इससे पता चलता है कि आदत में कितनी ताकत है कि वर्षों तक उसकी जकड़ रहती है।
आदतें अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी। ऐसी आदतें जो स्वयं के लिए और दूसरों के लिए नुकसानदेय होती है, जिनका हमारे शरीर और मन पर बुरा असर होता है,उन बुरी आदतों से बचना चाहिए। आदतों की गुलामी सबसे बड़ी गुलामी होती है। कुछ आदतें हमें बाहरी तौर पर बुरी दिखाई नहीं देती पर वे हमारे व्यक्तित्व का अवमूल्यन भी कराती है और अन्ततः नुकसान ही करती है जैसे बात बात में गाली देना,कई लोग' साला' शब्द कहे बिना वाक्य ही पूरा नहीं कर सकते।झूठ बोलना, बहुत बोलना और ऊंचा बोलना,मानो झगड़ा कर रहे हों , ये सब भी आदत बन जाती  हैं। फिर कई बुरी आदतें जो लत अर्थात एडिक्शन का रूप ले लेती है जैसे नशे की आदत, धुम्रपान आदि।
इसलिए ही हमारे ऋषि मुनियों ने सदा होशपूर्ण,सजग और सचेत हो कर जीने पर बल दिया है। आदतें एक प्रकार की बेहोशी का पर्याय है। ऐसा नहीं है कि आदतों को सुधारा या बदला नहीं जा सकता। धैर्य पूर्वक कृत संकल्प हो बुरी आदतों से छुटकारा पाया जा सकता है।

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