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संकटमोचन व भविष्यवाणी के लिए राजनीतिक लोग भी है बाबा के भक्त, लोहारू क्षेत्र के लोगों में है बाबा के प्रति गहरी आस्था

May 03, 2014 02:49 PM

एल.सी.वालिया, लोहारू:लोहारू उपमंड़ल के गांव खरकड़ी में प्रतिवर्ष बैशाख माह के शुक्ल पक्ष की षष्टी को लगने वाले बाबा गुलाबगिरी के भव्य मेला का शुभारंभ आज से हो जाएगा। 4 अप्रैल से मेलें के आयोजन के बाद अगले दिन विशाल भंडारें का आयोजन भी किया जाएगा। खरकड़ी व आसपास के एक दर्जन से भी अधिक गांवों के लोगों की आस्था का प्रमुख केन्द्र इस मेलें में भक्तजन बाबा के दर्शनों के लिए पहुंचते है और बाबा के मन्दिर में सुख, समृद्वि व शान्ति की कामना करते है। बाबा गुलाबगिरी एक महान तपस्वी थे तथा उन्होंने अपने जीवन के 47 वर्ष गहन तपस्या में बिताए।

बाबा गुलाबगिरी के बारे में बताया जाता है कि सन 1932 में गांव खरकड़ी से बाहर स्थित एक बगीची में बाबा आकर ठहरे, उन दिनों वर्षा न होने से क्षेत्र में अकाल का भारी संकट था। अकाल के कारण मानव व पशु पक्षी भूखमरी की कगार पर थे। क्षेत्र के सभी जोहड़, तालाब, सूख जाने से जल संकट भी गहरा गया था। ग्रामवासियों को जब सूचना मिली कि गांव की बगीची में एक हुष्ट पुष्ट 6 फुट लम्बे कद का बाबा ठहरा हुआ है तो परेशान लोगों ने बाबा के पास बगीची में जाकर अपना दुखड़ा रोया, जिसके बाद बाबा ने गांजे की चिलम के पास अपना धूना लगा लिया। उनके तप ने जादुई असर दिखाया तथा कुछ समय पश्चात ही मूसलाधार वर्षा होने लगी व वर्षा होने के कारण जहां लोगों को जलसंकट से निजात मिली वहीं क्षेत्र में चने की रिकार्ड फसल हुई। लोगों ने बाबा से बगीची में स्थाई तौर पर रहने का आग्रह किया तथा बाबा को भी यह बगीची पसन्द आने पर उन्होंने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया। बाबा के तप के कारण चने की रिकार्ड फसल को निकालने के बाद लोगों ने पहली बार खुशी में उत्सव मनाया गया तथा तभी से प्रतिवर्ष यहां मेला लगने की परंपरा बन गई तथा हर वर्ष यहां प्रसिद्व मेला लगता है।

बाबा की कृपा से गांव में नहीं होती पशुओं में बिमारी:-

बताते है कि एक बार गांव में पशुओं की बिमारी ने भी पैर पसार लिए, जिससे रोजाना पशु मरने लगे। ग्रामीणों ने बाबा से पशुओं को बचाने का आग्रह किया। इसके बाद बाबा ने गांव की परिक्रमा पूरे होने तक गांववासियों को निर्देश दिया कि गांव के सभी रास्तों पर पहरा दे ताकि परिक्रमा पूरी होने तक कोई भी व्यक्ति गांव में न आ सके तथा न ही गांव से बाहर जा सके। बुजूर्ग बताते है कि इस परिक्रमा के बाद आज तक गांव में कोई भी पशु बिमारी के कारण नहीं मरा है। बुजूर्गो के अनुसार बाबा गुलाबगिरी ने अनेक लोगों को विविध प्रकार के संकटों से बचाया व स्वास्थ्य का दान दिया। बाबा गुलाबगिरींने करीब 25 वर्ष तक हिमालय में तपस्या की तथा इस तपस्या के बाद वे भ्रमण करते हुए गांवों की आरे निकल पड़े। यहां से गुजरते हुए उन्हें खरकड़ी गांव की बगीची पसन्द आ गई ओर गांववालों के आग्रह पर वे यहीं रहने लगे। गांव के ग्रामीण खुद को भाग्यशाली मानते है कि बाबा उनके गांव में ठहरे तथा 22 वर्ष तक यहां तपस्या की। भादवा माह की पूर्णमासी को उन्होंने अपना 25 वर्ष का व्रत खोला। पशु पक्षियों से बाबा विशेष लगाव रखते थे तथा उनकी सुरक्षा के प्रति विशेष ध्यान रखते थे। बताते है कि बाबा के पास एक मोर था जिसे वे बेहद प्यार करते थे तथा बाबा अपने मोर को काजू बादाम खिलाते थे तथा इस मोर की मृत्यु के पश्चात बाबा ने पांच गांव का काज किया था। बाबा एक कुत्ता भी रखते थे तथा उसे अपने साथ ही खाना खिलाते थे। कुत्ते एवं मोर के अनूठे समागम को देख कोई अचंभित रहता था, क्योंकि कुत्ते व मोर में दुश्मनी होती है, लेकिन बाबा के कुत्ते व मोर के प्रेम को देखकर ऐसा कतई नहीं कहा जा सकता था। कुत्ते की मृत्यू के बाद उसकी समाधि भी मोर की समाधि के पास बनाई गई, जो आज भी मन्दिर परिसर में है।

राजनीतिक भविष्यवाणियों के लिए प्रसिद्व रहे बाबा गुलाबगिरी:-

बाबा गुलाबगिरी ने अपने तप एवं साधना के प्रकाश से अनेक गांवों के निराश लोगों को आलोकित करते हुए उनका जीवन सुख समृद्वि से भरपूर किया। बाबा की विभिन्न प्रकार की भविष्यवाणियों ने भी अपना चमत्कार दिखाया। 1960 में पूर्व मुख्यमंत्री चौ. बंशीलाल को रा'यसभा टिकट मिलने व विजयी होने की भविष्यवाणी सहित मुख्यमंत्री बनने तक क भविष्यवाणी की जो सटीक रही। बंशीलाल के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस के फरीदाबाद अधिवेशन के बारे में भविष्यवाणी करते हुए बाबा ने कहा था कि एक ओर उनकी चिता में आग लगेगी दूसरी ओर कांग्रेस के अधिवेशन के पांड़ाल में आग लगेगी, जो बिल्कूल सत्य साबित हुई।

सन् 1971 में बाबा ने राजस्थान के बीवासर में शरीर त्याग दिया। वे अपने के अन्तिम पांच वर्ष वहीं रहे तथा खरकड़ी गांव में भी बाबा की याद में ग्रामीणों ने बगीची में मन्दिर स्थापित कर दिया और बाबा की प्रतिमा भी लगाई। वर्तमान में यहां एक भव्य मन्दिर बनाया गया है जहां नवदम्पति अपना पारिवारिक जीवन शुरू करने से पहले बाबा के मन्दिर में धौक लगाने जाते है। शादी विवाह के अवसर पर घर में बनी मिठाई का पहला भोग बाबा गुलाबगिरी के मन्दिर में लगाया जाता है। मकर सक्रान्ति पर्व पर गांव के ग्रामीणों द्वारा मन्दिर में अन्नदान किया जाता है तथा प्रतिवर्ष यहां मेला लगता है। मेलें से पहली रात को विशाल जागरण आयोजित किया जाता है तथा भंड़ारा भी लगाया जाता है। मेलें में कुश्ती, कब्बडी व अन्य खेलकूद प्रतियोगिताऐं भी होती है, जिनका संचालन बाबा के नाम पर बना एक ट्रस्ट करता है।

बाबा गुलाबगिरी को वर्षा बाबा के नाम से भी जाना जाता है। 'येष्ठ माह में सात धूने लगाकर अपनी तपस्या के बल पर बाबा ने वर्षा होने की तिथी बता देते थे, जो सही होती थी। बाबा की याद में बीवासर में भी एक मन्दिर है तथा वहां भी प्रतिवर्ष मेला लगता है।

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