चंडीगढ़ - आज 23 जनवरी 2022 नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती है. हाल ही में केंद्र की मोदी सरकार द्वारा प्रतिवर्ष इस दिन को पराक्रम दिवस के रूप में और गणतंत्र दिवस के साथ ही जोड़कर मनाने का निर्णय लिया गया एवं आज इसे हरियाणा सहित पूरे देश में ऐसे ही मनाया जा रहा है.इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने नेताजी से जुड़े एक रोचक तथ्य के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि आज से तीस वर्ष पूर्व 23 जनवरी 1992 को भारत के राष्ट्रपति सचिवालय द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में उल्लेख किया गया कि राष्ट्रपति मरणोपरांत श्री सुभाष चंद्र बोस को भारत रत्न का राष्ट्रीय अवार्ड प्रदान करते हैं.उस समय केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी एवं आर.वेंकटरमन देश के राष्ट्रपति थे. बोस के अतिरिक्त उस वर्ष अबुल कलम आज़ाद, जेआरडी टाटा और सत्यजीत रे को भी भारत रत्न देने की राष्ट्रपति द्वारा घोषणा की गयी थी. इसी बीच नेताजी के परिजनों और उनके अन्य प्रशसंको आदि द्वारा सर्वप्रथम तो राष्ट्रपति सचिवालय द्वारा उन्हें भारत रत्न से अलंकृत करने सम्बन्धी जारी प्रेस विज्ञप्ति में उनके नाम के साथ मरणोपरांत शब्द का उल्लेख पर कड़ी आपत्ति जताई गयी थी क्योंकि तब तक इस तथ्य को आधिकारिक तौर पर पूर्ण रूप से स्वीकारा नहीं गया था कि नेताजी का देहांत वास्तव में 18 अगस्त 1945 को ताइवान में एक विमान दुर्घटना में हो चुका है. इस सम्बन्ध में भारत सरकार द्वारा वर्ष 1956 में गठित नेताजी जांच समिति और वर्ष 1970 में गठित नेताजी जांच आयोग द्वारा भी उनके निधन की पूर्णतया पुष्टि नहीं की गयी थी. बहरहाल, नेताजी के परिजनों का यह भी तर्क था कि उनका व्यक्तित्व किसी भी अवार्ड से ऊपर है, इस प्रकार उन्होंने केंद्र सरकार से भारत रत्न स्वीकार करने की असमर्थता जाहिर की थी.इसी बीच केंद्र सरकार द्वारा हालांकि इस मामले में आगे कोई कार्यवाही नहीं की गयी थी परन्तु यह मामला पहले कलकत्ता हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था. याचिकाकर्ता द्वारा इस बात की मांग की जा रही थी कि केंद्र सरकार द्वारा औपचारिक तौर पर नेताजी को मरणोपरांत भारत रत्न प्रदान करने की भारत के राष्ट्रपति द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति रद्द की जाए. उन्होंने आगे बताया कि अंतत: 4 अगस्त 1997 को सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीड जिसमें जस्टिस सुजाता मनोहर और जीबी पटनायक शामिल थे, द्वारा उक्त मामले (यूनियन ऑफ़ इंडिया बनाम बिजन घोष ) का इस प्रकार से निपटारा किया गया कि चूँकि नेताजी को भारत रत्न देने के सम्बन्ध में केवल राष्ट्रपति द्वारा प्रेस विज्ञप्ति जारी की गयी है एवं उसके पश्चात न तो नेताजी को भारत रत्न देने सम्बन्धी गजट अधिसूचना जारी की गयी है और न ही इस सम्बन्ध में राष्ट्रपति द्वारा उपयुक्त सनद जारी की गयी है और न ही प्रासंगिक रजिस्टर में उनके नाम की एंट्री की गयी है, इसलिए उनको भारत रत्न का सम्मान देने के निर्णय को रद्द करने का आदेश देने का कोई औचित्य नहीं बनता एवं इस सम्बन्ध में राष्ट्रपति सचिवालय द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति को भी रद्द माना जाए क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा उस पर कोई भी कार्यवाही नहीं की गयी है. इसी बीच वर्ष 1999 में नेताजी की मृत्यु के रहस्य की जांच के लिए केंद्र की तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने मुख़र्जी आयोग का भी गठन किया था जिसकी रिपोर्ट नवंबर, 2005 में सौंपी गयी जिसे मई, 2006 में संसद में पेश किया गया परन्तु उसकी जांच को ख़ारिज कर दिया गया गया था. इसके बाद मोदी सरकार के सत्ता के आने के बाद नेताजी से जुडी कई गोपनीय फाइलों को डिक्लासीफाई कर सार्वजनिक किया गया.