चंडीगढ़:हाल के वर्षों में एंडोस्कोपिक प्रक्रियाओं से कई बड़े लाभ मिले हैं और गैस्ट्रो—इंटेस्टाइनल ट्रैक्ट (जीआई ट्रैक्ट) संबंधी कई डिसआॅर्डर के इलाज के लिए एडवांस्ड और न्यूनतम शल्यक्रिया की राह आसान हुई है। एक कारगर साधन के तौर पर एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड (ईयूएस) ने विभिन्न प्रकार के जीआई ट्रैक्ट डिसआॅर्डर से पीड़ित मरीजों के इलाज में अनुकरणीय बदलाव ला दिया है।
ईयूएस के दौरान भोजन नली, पेट, आंत के ऊपरी हिस्से और बड़ी आंत के निचला हिस्से के आसपास वाली जगहों का अध्ययन किया जाता है। गॉल ब्लाडर, पित्त वाहिनी, पेनक्रियाज के डिसआॅर्डर और लिम्फ नोड बढ़ने से पीड़ितों को इस प्रक्रिया का लाभ मिल सकता है।
मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल, साकेत नई दिल्ली में गैस्ट्रोइंटरोलॉजी के निदेशक और प्रमुख डॉ. विवेक सिंगला ने कहा, 'कम से कम 8 घंटे तक मरीज को उपवास पर रहने के बाद बेहोश कर एंडोस्कोपिक अल्ट्रासोनोग्राफी की जाती है ताकि यह दर्दरहित प्रक्रिया बन सके। यदि टिश्यू सैंपलिंग की जरूरत पड़ती है तो डॉक्टर से चर्चा कर खून को पतला करने वाली दवाइयों का सेवन भी रोक देना पड़ता है। जरूरत पड़ने पर टिश्यू सैंपल लिया जाता है और अब नई प्रकार की सुइयों की मदद से इस प्रक्रिया के तहत बायोप्सी भी कराई जा सकती है। पीलिया, बुखार, पेनक्रियाटिक पैथोलॉजी, कैंसर के दर्द का कारण जानने और जीआई ट्रैक्ट कैंसर के कारण उल्टी तथा पीलिया का इलाज अब इस न्यूनतम शल्यक्रिया से बिल्कुल संभव हो गया है।'
इस आविष्कार का मकसद बेहतर और न्यूनतम शल्यक्रिया के जरिये विभिन्न रोगों के इलाज में बदलाव लाना है क्योंकि ईयूएस के इस्तेमाल से त्वचा में कट लगाए बिना विभिन्न डायग्नोस्टिक और थेराप्यूटिक प्रक्रियाएं संपन्न की जाती हैं। जीआई ट्रैक्ट के अंदर का अल्ट्रासाउंड करते हुए ईयूएस एंडोस्कोप की नोक पर कैमरे के जरिये मिनिएचर अल्ट्रासाउंड किया जाता है जिससे उच्च क्वालिटी और बारीक जानकारी वाली तस्वीरें पाने में मदद मिलती है।
उन्होंने कहा, 'शुरुआती दौर में परंपरागत तकनीकों के कारण मरीज की बहुत सारी स्थितियां पता नहीं चल पाती थीं। ईयूएस से इस चरण में भी उच्च स्तरीय जानकारी मिल जाती है और कई तरह की बीमारियों पर काबू पाने के तौर—तरीके बदल जाते हैं जिससे शुरुआती चरण की डायग्नोसिस और इलाज संभव हो जाता है।'