डॉ कमलेश कली
जीवन में सच्ची निडरता स्वतंत्र चिंतन और आत्म विश्वास से आती है। आत्म अभिव्यक्ति को अपनी संपूर्णता के साथ प्रकट करने के लिए स्वयं में निश्चय अर्थात आत्मविश्वास के बलबूते ही मन की शक्तियों का विकास होता है। कायरता और भीरुता ही मनुष्य की स्वतंत्रता में सबसे बड़ी बाधा होती है। आज हम अपने आसपास हजारों युवा पुरुषों और युवा महिलाओं को देखते हैं जो कुछ करना चाहते हैं, महत्वाकांक्षी हैं पर वो अजीब सी भीरुता और आत्मविश्वास की कमी के चलते जीवन मेंआगे नहीं बढ़ पाते और उनकी दमित महत्वाकांक्षाएं उनके जीवन को तनावपूर्ण और नरकमय बना देती है। अज्ञानता और अविद्या के बंधन में बंधे हुए मनुष्य जीवन के सच्चे आनंद से वंचित हो जाते हैं। अपने संकीर्ण और स्वार्थी दृष्टिकोण के चलते लोग अन्धविश्वास और पूर्वाग्रहों के खोल में सिमट जाते हैं,शिक्षा और ज्ञान के प्रकाश से मिलने वाले उजाले अर्थात स्वतंत्रता को भी प्राप्त नहीं कर पाते, उन्हें अपनी अज्ञानता की गुलामी का भान ही नहीं होता। वो सोचते हैं कि केवल बंदीगृहों में रहने वाले ही बंदी होते हैं, जबकि अज्ञान और अविद्या सबसे बड़े बन्धन है जो लोगों को अपने तिमिर पाश में फांसे रखते हैं।
इस संबंध में अकबर और बीरबल का संवाद जिसमें अकबर बीरबल से पूछता है कि दुनिया में सबसे बड़ी अविद्या क्या है,तो बीरबल कहता है कि लोगों में भेड़चाल की प्रवृत्ति सबसे बड़ी अविद्या है,गतानुगता लोक: अर्थात देखा देखी एक दूसरे का अंधानुकरण करना सबसे बड़ी अज्ञानता है। बादशाह को अपनी बात स्पष्ट करने के लिए बीरबल एक युक्ति रचता है और दरबार से एक महीने की छुट्टी ले लेता है।एक जूते बनाने वाले विश्वसनीय शिल्पकार से हीरो जड़ित जूते का जोड़ा बनाने के लिए कहता है। उसे मुंह मांगी कीमत देकर ,इस शर्त के साथ कि इन जूतियों के बारे में किसी को कुछ नहीं बताएगा । कुछ दिन बाद उस हीरे-जवाहरात वाली जूतियों में से एक पांव की जूती को रात को मस्जिद में फिंकवा देता है। सुबह जब मौलवी की नजर उस चमकती नई जूती पर पड़ती है तो वह अचरज में पड़ जाता है और सोचने लगता है कि यह किसकी हो सकती है ?वह उसके साथ की दूसरे पांव की जूती ढूंढने लगता है, नहीं मिलती ,तो वह अपने साथी से उस बारे बात करता है। उन्हें लगता है कि हो न हो ऐसी जूती तो सिर्फ ख़ुदा की ही हो सकती है, उसे चूम चाट कर वही सजा देते हैं।अब यह बात आग की तरह सारे शहर में फैल जाती है, अल्लाह परवरदिगार की जूती को देखने के लिए जनता टूट पड़ती है, कतारें लग जाती है, भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सिपाही लगाएं जाते हैं। आखिरकार अकबर बादशाह भी खुदा की जूती के दर्शन करने मस्जिद में जाते हैं। महीने बाद जब बीरबल दरबार पहुंचता है तो उसका मुंह लटका होता है, बादशाह उसकी उदासी का कारण पूछते हैं तो बीरबल अपने घर में चोरी के बारे में बताता है। उसके घर में उसके पुरखों बुजुर्गो के जमाने से चली आ रही हीरे जवाहरात जड़ित जूतियों में से एक पांव की जूती चोरी हो गई है।जब वो अपने घर से लाई गई जूती को बादशाह को दिखाता है, जो हूबहू मस्जिद में रखी जूती से मेल खाती थी।तब बीरबल बादशाह को समझाता है कि देखो लोग तो लोग ,आप भी बुद्धु बन गये, यही अविद्या है।जो कुछ मौलवी ने अपने मन से बना कर कहा ,सबने मान लिया । स्वयं स्वतंत्र चिंतन और विवेचन करने की बजाय अंधविश्वास और नासमझी से वही करने और मानने लगे। यही गुलामी का बंधन है और यही सबसे बड़ी अविद्या है.