डॉ कमलेश कली
प्रश्न करना मानवीय प्रवृत्ति है, आज जितना हम ज्ञान का विस्तार देखते हैं, सभ्यता का विकास हुआ है, इसका श्रेय मनुष्य के अंदर उठने वाली जिज्ञासा को जाता है। लोकतंत्र की अवधारणा ही इसी सिद्धांत पर आधारित है। सरकार जो भी करती है, उसे विपक्ष तथा चुने हुए सांसद उनसे प्रश्न करते हैं, उनके निर्णयों को चुनौती देते हैं। वर्तमान समय में देश में ऐसा वातावरण बना है कि ना तो सार्थक और रचनात्मक प्रश्न पूछे जा रहे हैं और अगर पूछे भी जा रहे हैं तो वो अनुत्तरित है और सरकार उत्तर देने में ना कोई दिलचस्पी दिखाती है और ना ही जवाबदेही लेती है। पहले तो प्रश्न काल को संसद की कार्यवाही से हटाया गया और जो लिखित में प्रश्न पूछे गए, उनके भी सरकार ने कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिये।एक रिपोर्ट के अनुसार अभी हाल ही में हुए मानसून सत्र में सरकार ने विपक्ष के किसी भी सवाल का जवाब देने की इच्छुक नज़र नहीं आई।हर बार एक ही जवाब मिला कि सरकार के पास इसको लेकर कोई डाटा उपलब्ध नहीं है। राजनीतिक विश्लेषक आरती जैरथ के अनुसार इस सत्र के दौरान सरकार ने 11 ऐसे सवालों के जवाब में कहा कि सरकार के पास इनको लेकर डाटा उपलब्ध नहीं है। उदाहरण के लिए श्रम मंत्रालय ने इस सवाल के जवाब में कहा कि लाकडाउन के दौरान अपने घरों को लौटते समय कितने मजदूरों की मौत हुई या कितने घायल हुए, इसको लेकर उनके पास कोई डाटा नहीं है । एक अन्य सवाल के जवाब में कि असंगठित क्षेत्र में कार्यरत मजदूरों की संख्या बारे में पूछा गया तो इसको लेकर हाथ खड़े कर दिए और कहा कि ऐसा डाटा संग्रह करने का अभी तक कोई प्रस्ताव नहीं है। सरकार ने लाकडाउन और कोरोना महामारी के दौरान जान गंवाने वाले स्वास्थ्य कर्मियों, सफाई कर्मियों और पुलिस कर्मियों की संख्या को लेकर डाटा उपलब्ध नहीं होने की बात दोहरा दी। ऐसे ही देश में कितने प्लाज्मा बैंक है और देश में जेलों में राजनीतिक कैदियों की संख्या पर भी कोई जानकारी नहीं होने की बात कही। हैरानी की बात यह है कि मौजूदा समय में डाटा से चलने वाली दुनिया में जहां आंकड़े और संख्याएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, सरकार इन महत्वपूर्ण सूचनाओं और संख्याओं के संग्रहण में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही अथवा उनको छुपाया जा रहा है।
वर्तमान संसद सत्र की कार्य से निराश पश्चिम बंगाल से लोकसभा सांसद महुआ मोइत्रा ने इसे प्रजातंत्र का गला घोंटने की प्रक्रिया बताया तो एक अन्य सांसद ने इसे लोकतंत्र पर ताला लगाने जैसा बताया। महुआ के अनुसार इस समय यदि न्यायपालिका से प्रश्न पूछा जाता है तो उसे कोर्ट की अवमानना करार दिया जाता है, समाज में प्रश्न पूछो तो देश द्रोह अर्थात सेडिशन का दोषी ठहरा दिया जाता है, अब तो संसद में भी प्रश्न नहीं पूछ सकते, उसकी भी व्यवस्था खत्म कर दी है।
प्रश्न पूछना, असहमति जताना लोकतांत्रिक व्यवस्था की आत्मा होती है, इस संबंध में लिंकन का प्रसिद्ध कथन गौरतलब है कि" मैं तुम्हारे विचारों से हो सकता है बिल्कुल सहमत नहीं हूं,पर तुम्हारे असहमति के विचारों को व्यक्त करने के अधिकार से मैं पूर्णतः सहमत हूं।"हमारे देश में प्रजातांत्रिक व्यवस्था तो देश के आजाद होने के बाद लागू हुई है पर हमारे देश में प्रश्न पूछे जाने की परंपरा बहुत पुरानी है। हमारे वेदों, पुराणों और उपनिषदों में सारा ज्ञान प्रश्न उत्तर के माध्यम से ही बताया गया है। पूरी गीता श्रीकृष्ण और अर्जुन के सवाल जवाब का ब्योरा है, यहां तक कि संजय ने भी गीता धृतराष्ट्र के प्रश्नों के उत्तर में कही । विक्रम बेताल पच्चीसी हो या फिर पंचतंत्र की कहानियां सब प्रश्नोत्तरी के द्वारा शिक्षाओं को देती है। देश में मौजूदा स्थिति पर तो यही कहा जा सकता है कि ना उन्हें मेरे हाल का ख्याल है,ना हमें उनके हाल का ख्याल है, पर जब भी मिलते हैं पूछते हैं क्या हाल है? क्या हाल है?