COURTESY DAINIK BHASKAR JAN 24
प्रियंका को महासचिव पद की जिम्मेदारी देने का अर्थ
कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बनारस और योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर क्षेत्र वाले उत्तर प्रदेश को लक्ष्य करके प्रियंका गांधी वाड्रा को पार्टी का महासचिव बनाकर और पूर्वी उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीटों की जिम्मेदारी देकर बहुत दिनों से प्रतीक्षित तुरुप का पत्ता चल दिया है। प्रियंका के व्यापक राजनीति में सक्रिय होने पर भाजपा ने भले यह प्रतिक्रिया दी हो कि यह राहुल गांधी की विफलता है और परिवारवाद का नया प्रमाण है लेकिन, इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि इसका कांग्रेस को फायदा ही होगा। कांग्रेस कार्यकर्ताओं की यह बहुत पुरानी मांग थी लेकिन, सोनिया गांधी और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने राहुल को ही परिपक्व बनाने पर ध्यान केंद्रित रखा था। निश्चित ही राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष के रूप में परिपक्व हो चुके हैं और हाल ही में तीन राज्यों में पार्टी की विजय से उन्होंने अपनी क्षमता प्रदर्शित भी की है। दूसरी ओर प्रियंका ने अब तक अपनी राजनीतिक सक्रियता को सीमित रखा था और वे अपनी मां सोनिया गांधी की रायबरेली सीट और राहुल की अमेठी सीट पर जनता से मिलती-जुलती और वहां की राजनीतिक गतिविधियों पर निगाह रखती रही हैं। अब उन्हें सक्रिय राजनीति में उतारने का निर्णय आम चुनाव के संदर्भ में उत्तर प्रदेश के राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए लिया गया है। उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा ने अपने गठबंधन से कांग्रेस को अलग रखकर उसे यह मौका दे दिया है कि वह अब लोकसभा की सर्वाधिक सीटों वाले इस प्रदेश में अपने बूते पर मैदान में उतरे। कांग्रेस अब प्रियंका के बहाने छवियों की लड़ाई में उतर चुकी है। प्रियंका अपनी दादी इंदिरा गांधी जैसी दिखती हैं और बोलने में भी आकर्षक प्रभाव छोड़ती हैं। उनके आने से पूर्वांचल के वे युवा जो भाजपा से खिन्न हैं और वे महिलाएं जो मायावती के प्रति आकर्षित नहीं हैं, प्रियंका के पक्ष में अपनी राय बना सकती हैं। प्रियंका के साथ एक ही दिक्कत है और वह है उनके पति की छवि। भाजपा उनके पति के बहाने उन्हें घेरने की कोशिश करेगी और संभवतः यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी ने यह दांव चुनाव के मुहाने पर खेला है। प्रियंका सर्वाधिक वोट भाजपा का ही काटेंगी लेकिन, अगर कांग्रेस अपने जनाधार को बढ़ाती हुई दिखेगी तो इससे सपा-बसपा गठबंधन को भी नुकसान हो सकता है। इसलिए कांग्रेस के इस दांव से उत्तर प्रदेश में नए विपक्षी गठबंधन की संभावना भी दिख रही है