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17 प्रतिशत बच्चे साइबर बुलीइंग के 'शिकार', दिमाग पर भी असर
Rahul.Anand@timesgroup.com
• नई दिल्ली : साइबर बुलीइंग के खतरनाक रूप से अब स्कूली बच्चे भी सेफ नहीं हैं। दिल्ली के 17 प्रतिशत बच्चे इसका शिकार पाए गए हैं। स्मार्ट फोन और इंटरनेट के बढ़ते चलन से अब स्कूली बच्चे खुद शिकार बनने के लिए दूसरों बुलीइंग करने में भी पीछे नहीं है। एक स्टडी में पता चला है कि यह बुलीइंग केवल ऑनलाइन नहीं रही है। एशियन जरनल ऑफ साइकायट्री ने इस स्टडी को प्रकाशित किया है। इसके तहत एक स्कूल की एक ही क्लास के 174 बच्चों को शामिल किया था। यह स्कूल भले ही सरकारी था, लेकिन इंग्लिश मीडियम का था। बच्चे मिडल क्लास के थे। 174 स्कूली बच्चों में 121 लड़के और बाकी लड़कियां थीं।
यह स्टडी मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज ने की है। स्टडी में सेंट्रल दिल्ली के एक सरकारी स्कूल को शामिल किया गया था। इसमें 8वीं क्लास के 174 बच्चों को रखा गया। उनकी उम्र 11 से 15 साल के बीच थी। डॉ जुगल किशोर ने बताया कि हैरानी की बात है कि 70 प्रतिशत बच्चों को साइबर बुलीइंग के बारे में पता था। 17 प्रतिशत बच्चे बुलिंग के शिकार थे। 7 प्रतिशत बच्चों ने माना कि वे दूसरों की बुलिंग कर चुके हैं। स्टडी में पाया गया कि 15 प्रतिशत बच्चे शारीरिक तौर पर भी बुलिंग के शिकार हो रहे हैं। इसमें मारपीट की धमकी देकर डराया गया था।
क्या है साइबर बुलीइंग : डॉक्टर ने बताया कि बुलिंग का मतलब तंग करना है। इतना तंग करना कि पीड़ित का मानिसक संतुलन बिगड जाए। बुलीइंग पीड़ित को मानसिक, इमोशनल और दिमागी रूप से प्रभावित करती है। बुलीइंग जब इंटरनेट के जरिए होता है तो इसे साइबर बुलीइंग कहते हैं।
पैरंट्स का रोल : रिसर्च करने वाले डॉक्टर का कहना है कि बच्चे को अब स्मार्ट फोन और इंटरनेट के यूज से रोक पाना तो मुश्किल है, लेकिन पैरंट्स का रोल बढ़ गया है। उन्हें अपने बच्चों के बर्ताव पर नजर रखनी होगी। उन्हें बच्चे पर नजर रखनी होगी कि उनकी नींद कैसी है। खानपान में दिलचस्पी, चिड़चिड़ापन, रिश्तेदारों से मिलने से कतराना और अकेले रहने के लक्षण किसी प्रकार के तनाव की वजह हो सकते हैं। टीचरों को इसकी ट्रेनिंग होनी चाहिए कि बच्चों का बर्ताव अचानक तो नहीं बदल रहा।
दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में 174 बच्चों पर हुई चौंकाने वाली स्टडी